IPL 2023: 405 खिलाड़ियों पर लगेगा दांव, जानिए किस टीम के पास कितना पैसा

नई दिल्ली: IPL 2023 के मिनी ऑक्शन के लिए सभी 10 फ्रेंचाइजियों ने अपनी कमर कस ली है. इस ऑक्शन में सभी फ्रेंचाइजियां अपना स्क्वॉड पूरा करेगी. कोच्चि में शुक्रवार को दोपहर 2.30 बजे से शुरू होगी. इस मिनी ऑक्शन में 405 से ज्यादा खिलाड़ियों पर बोली लगेगी. शुरू में 10 फ्रेंचाइजियों ने 991 खिलाड़ियों में से 369 खिलाड़ियों को शॉर्ट लिस्ट किया था, मगर इसके बाद टीम के कहने पर 36 खिलाड़ियों को और जोड़ा गया. जिसके बाद ऑक्शन में उतरने वाले खिलाड़ियों की संख्या 405 हुई.

मिनी ऑक्शन के लिए चुने गए 405 में से 273 भारतीय खिलाड़ी हैं, जबकि 132 विदेशी खिलाड़ी है. 132 विदेशी खिलाड़ियों में से 4 खिलाड़ी एसोसिएट नेशन के हैं. इनमें कुल 119 कैप्ड यानी इंटरनेशनल क्रिकेट खेलने वाले और 282 अनकैप्ड खिलाड़ी हैं.

IPL 2023 में सिर्फ 87 वैकेंसी
सभी 10 फ्रेंचाइजियों को मिलाकर कुल 87 स्लॉट है, जिसमें 30 स्लॉट विदेशी खिलाड़ियों के लिए है. यानी ऑक्शन में 87 खिलाड़ियों की किस्मत खुलेगी. ऑक्शन में सबसे ज्यादा बेस प्राइस 2 करोड़ रुपये की है, जिसमें 19 विदेशी खिलाड़ी हैं. वहीं 1.5 करोड़ रुपये की बेस प्राइज में 11 खिलाड़ी हैं. 20 खिलाड़ी 1 करोड़ रुपये की बेस प्राइस के साथ नीलामी में उतरेंगे, जिसमें मनीष पांडे और मयंक अग्रवाल 2 भारतीय हैं.

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हैदराबाद के पास सबसे विदेशी व्यापार का महत्व ज्यादा पैसा
आईपीएल 2023 मिनी ऑक्शन में सबसे ज्यादा खरीदारी सनराइजर्स हैदराबाद करेगी, जिसमें अपने कप्तान केन विलियमसन को रिलीज कर दिया था. हैदराबाद के पर्स में सबसे ज्यादा पैसा है. उसके पास 42.25 करोड़ रुपये बचे हैं. यही नहीं उसे अपना स्क्वॉड पूरा करने के लिए 13 खिलाड़ी खरीदने होंगे, जिसमें 4 स्लॉट विदेशी खिलाड़ियों का है. हैदराबाद के बाद पंजाब किंग्स के पर्स में सबसे ज्यादा पैसा है. पंजाब के पास 32.2 करोड़ रुपये हैं और ऑक्शन में वो 3 विदेशी खिलाड़ियों सहित कुल 9 खिलाड़ी खरीदेगी.विदेशी व्यापार का महत्व

वाणिज्यवाद क्या है – महत्व, प्रभाव, विशेषताएं एवं पतन के कारण

वाणिज्यवाद क्या है, वाणिज्यवाद शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया, वाणिज्यवाद का महत्व, वाणिज्यवाद के प्रभाव, वाणिज्यिक क्रांति क्या है, वाणिज्यवाद की विशेषताएं क्या है और वाणिज्यवाद के पतन के कारणों का उल्लेख कीजिए आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

Table of Contents

वाणिज्यवाद (Mercantilism) क्या है

वाणिज्यवाद एक विशेष नीति है विदेशी व्यापार का महत्व जिसके अंतर्गत व्यापार एवं उद्योग को नियमित करके धन की प्राप्ति की जाती है। वाणिज्यवाद को एक व्यापारिक क्रांति के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इससे पश्चिमी यूरोप में एक नई आर्थिक प्रवृत्ति आयी। इसका मुख्य कारण राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना एवं पुनर्जागरण करना था। वाणिज्यवाद को राज्य की शक्तियों को बढ़ाने एवं आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया था।

वाणिज्यवाद एक आर्थिक विचारधारा है जो सोलवीं एवं सत्रहवीं सदी में जर्मनी, फ्रांस एवं इंग्लैंड में प्रचलित हुई और आठवीं सदी तक प्रचलित हुई। वाणिज्यवाद की धारणा पश्चिम यूरोप के देशों एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत से प्राप्त होने वाले धन से संबंधित है। उद्योग या व्यापार की दृष्टि से वाणिज्यवाद की कोई सीमा नहीं है। वाणिज्यवाद का मूल सिद्धांत राज्यों को धन के क्षेत्र में समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाने का होता है। वाणिज्यवाद के अंतर्गत व्यापार में स्वर्ण प्राप्ति एवं संगठन पर अधिक बल दिया गया जिसके फलस्वरूप देश व राज्यों की आर्थिक शक्ति एवं संपन्नता में वृद्धि हुई।

वाणिज्यवाद शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया

वाणिज्यवाद एक नवीन आर्थिक विचारधारा है जिसका विवेचन 1776 ई० में सर्वप्रथम ‘एडम स्मिथ’ ने अपनी बुक ‘दी वेल्थ ऑफ द नेशन्स’ (The Wealth of Nations) में किया था। वाणिज्यवाद एक आधुनिक विचारधारा है जो सरकार की आर्थिक नीतियों को विशेषकर व्यापार जगत एवं वाणिज्य को नियमित करने की दिशा को प्रदर्शित करता है।

वाणिज्यवाद का महत्व

वाणिज्यवाद नीति के अंतर्गत व्यापारी वर्ग को नियमित करने में सहायता मिली। इसकी मदद से राज्य में व्यापार को व्यवस्थित ढंग से चलाने एवं धन अर्जित करने भी सहायता प्राप्त हुई। वाणिज्यवाद में “अधिक सोना–चांदी प्राप्त कर अधिक बलशाली बनो” का नारा प्रचलित हुआ। इसके अलावा राज्य का सशक्तिकरण करने एवं विदेशी व्यापार का महत्व धन प्राप्ति (सोना–चांदी) हेतु वाणिज्यवाद बेहद प्रभावकारी साबित हुआ। वाणिज्यवाद से व्यापार संगठन की प्रक्रियाओं को भी मजबूत बनाने में सहायता मिली, जिससे राष्ट्र को कई प्रकार से फायदा मिला।

वाणिज्यवाद के प्रभाव

वाणिज्यवाद का समाज पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों ही प्रकार का प्रभाव देखा जा सकता है। वाणिज्यवाद की धारणा से यूरोपीय देश कई प्रकार से प्रभावित हुए। इसकी मदद से व्यापारियों एवं बड़े उद्योगपतियों को व्यावसायिक लाभ में वृद्धि हुई परन्तु वहीं आम आदमी को लाभ में कमी भी हुई।

  • वाणिज्यवाद के परिणाम स्वरूप राज्यों की शक्ति में वृद्धि हुई जिससे राज्य समृद्ध हुए। इसके साथ ही राज्य को व्यापार करने के नए अधिकार प्राप्त हुए जिसके कारण कई राज्यों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने में आसानी हुई।
  • वाणिज्यवाद की सहायता से मुद्रा के प्रयोग में वृद्धि हुई जिसके कारण देश में मुद्रा का व्यवस्थितिकरण हो सका। इसके अलावा राज्यों में बैंकों एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की स्थापना भी हुई जिससे मुद्रा को संरक्षित किया जा सका। वाणिज्यवाद में धन को अधिक महत्व दिया गया जिसके फलस्वरूप राजकोष में अधिक से अधिक धन को लाया जा सका।
  • वाणिज्यवाद के कारण व्यापार के नियम एवं तौर–तरीकों में बदलाव आए जिससे राज्यों को विकसित होने में मदद मिली। इस कारण कई राज्यों में व्यापारिक प्रतियोगिता का माहौल भी उत्पन्न हुआ।
  • वाणिज्यवाद के लागू होने के पश्चात् बड़े उद्योगपतियों को व्यापार में अधिक लाभ मिला परंतु साधारण लोगों को सामान्य व्यापार में नुकसान हुआ। इस कारण राज्यों में व्यापारिक एवं औद्योगिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • वाणिज्यवाद के अंतर्गत धन को अधिक महत्व दिया गया जिसके फलस्वरूप कई देशों में लूट एवं शोषण के युग की शुरुआत हुई। इसके अलावा इस युग में मानवीय श्रम एवं शोषण को बढ़ावा मिला जिसके कारण आम लोगों के जीवन में संघर्ष और अधिक बढ़ गया।
  • वाणिज्यवाद या व्यापारवाद के कारण कृषि एवं कृषि उद्योगों में भारी गिरावट आई क्योंकि वाणिज्यवाद के अंतर्गत केवल व्यापार को ही प्राथमिकता दी जाती थी।
  • वाणिज्यवाद के कारण राजकोष में धन की संख्या को बढ़ाने के उद्देश्य से आम जनता पर करों के दर को बढ़ाया गया जिससे लोगों के जीवन स्तर में कमी आई एवं लोगों में विद्रोह की भावना ने जन्म लिया।

वाणिज्यिक क्रांति (COMMERCIAL REVOLUTION) क्या है

वाणिज्यिक क्रांति एक अवधि है जिसमें व्यापारवाद, उपनिवेशवाद एवं आर्थिक प्रसार अपनी चरम सीमा पर होती है। वाणिज्यिक क्रांति ग्याहरवीं शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी की शुरुआत तक की अवधि को माना जाता है। व्यापार के क्षेत्र में जल एवं स्थल दोनों के मार्ग से होने वाले विस्तार एवं विकास को वाणिज्यिक क्रांति के नाम से जाना जाता है।

वाणिज्यिक क्रांति के दौरान यूरोपीय क्षेत्र के लोगों ने रेशम, दुर्लभ मसालों एवं अन्य कीमती वस्तुओं की दोबारा खोज की जिससे लोगों में व्यापार करने एवं व्यापार को बढ़ाने की नई सोच ने जन्म लिया। 15 वीं एवं 16 वीं शताब्दी में नवगठित यूरोपीय राज्य विदेशी व्यापार का महत्व वैकल्पिक व्यापार मार्ग की आवश्यकता थी जिससे वे अंतरराष्ट्रीय व्यापार आसानी से कर सकें। वाणिज्यिक क्रांति के कारण यूरोपीय राज्य को नव निर्माण एवं देश विदेश में यात्रा करने की अनुमति मिली जिससे उन्हें व्यापार करने में आसानी हुई।

वाणिज्यवाद की विशेषताएं क्या है उस के पतन के कारणों का उल्लेख कीजिए ?

विदेशी व्यापार का महत्व

विदेशी व्यापार (Foreign Trade): भारत के विदेश व्यापार के अन्तर्गत भारत से होने वाले सभी निर्यात एवं विदेशों से भारत में आयातित सभी सामानों से है। भारत विश्व के 190 देशों को लगभग 7500 वस्तुएँ निर्यात करता है तथा 740 देशों से लगभग 6000 वस्तुएँ आयात करता है।

विदेशी व्यापार (Foreign Trade)

1950-51 में, भारत का बाहरी व्यापार रु 214 करोड़ था जो बढ़कर 2009-10 में 22, 09,270 करोड़ रु हो गया।

यद्यपि फूलों के उत्पादों, ताजे फलों, समुद्री उत्पादों और चीनी में वृद्धि दर्ज की गई है; लेकिन पारंपरिक वस्तुओं जैसे कॉफी, मसाले, चाय, दाल, आदि के निर्यात में भारी गिरावट आई है।

इंजीनियरिंग के सामान, रत्न, और गहने भारत के विदेशी व्यापार में काफी हद तक योगदान करते हैं।

1970 के दशक में हरित क्रांति के साथ, खाद्यान्न के आयात में गिरावट आई; लेकिन इसे उर्वरकों और पेट्रोलियम द्वारा बदल दिया गया।

भारत के आयात की अन्य प्रमुख वस्तुओं में मोती और अर्द्ध कीमती पत्थर, सोना और चांदी, धातु के अयस्क और धातु स्क्रैप, अलौह धातु, इलेक्ट्रॉनिक सामान, आदि शामिल हैं।

व्यवसाय सहयोगी (Trading Partners)

कुल व्यापार में (भारत के साथ) एशिया और आसियान का हिस्सा 2000-01 में 33.3 प्रतिशत से बढ़कर 2011-12 की पहली छमाही में 57.3 प्रतिशत हो गया; जबकि क्रमशः यूरोप और अमेरिका 42.5 प्रतिशत से घटकर 30.8 प्रतिशत हो गया।

संयुक्त राज्य अमेरिका, जो 2003-04 में पहले स्थान पर था, 2010-11 में तीसरे स्थान पर वापस आ गया है।

यूएई भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन रहा है, जिसके बाद चीन (2010-11 के आंकड़े) है।

समुद्री मार्ग भारतीय व्यापार का प्रमुख व्यापारिक मार्ग है।

समुद्री बंदरगाहों (Sea-Ports)

वर्तमान में, भारत में 12 प्रमुख बंदरगाह और 185 छोटे या मध्यवर्ती बंदरगाह हैं।

12 प्रमुख बंदरगाहों ने वर्ष 2008-09 में देश के समुद्री यातायात का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा संभाला था।

भारतीय बंदरगाहों की क्षमता 1951 में 20 मिलियन टन कार्गो हैंडलिंग से बढ़कर 2008-09 में 586 मिलियन टन से अधिक हो गई।

गुजरात के पश्चिमी तट पर कच्छ की खाड़ी में स्थित कांडला बंदरगाह को एक प्रमुख बंदरगाह के रूप में विकसित किया गया है।

कांडला बंदरगाह विशेष रूप से बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पादों विदेशी व्यापार का महत्व और उर्वरक प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

मुंबई बंदरगाह

  • मुंबई में एक प्राकृतिक बंदरगाह है और यह देश का सबसे बड़ा बंदरगाह है।
  • बम्बई (मुंबई) बंदरगाह मध्य पूर्व, भूमध्यसागरीय देशों, उत्तरी अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों से सामान्य मार्गों के करीब स्थित है; जहां देश के विदेशी व्यापार का प्रमुख हिस्सा होता है।
  • मुंबई बंदरगाह पर दबाव को कम करने के लिए महाराष्ट्र के न्हावा शेवा में जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह को एक उपग्रह बंदरगाह के रूप में विकसित किया गया था।
  • जवाहरलाल नेहरू पोर्ट भारत का सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट है।
  • मारमागाओ पोर्ट, ज़ुआरी मुहाना के प्रवेश द्वार पर स्थित है; जो गोवा में एक प्राकृतिक बंदरगाह है।
  • न्यू मंगलौर पोर्ट कर्नाटक राज्य में स्थित है; यह उर्वरकों, पेट्रोलियम उत्पादों, खाद्य तेलों, कॉफी, चाय, लकड़ी की लुगदी, धागे, ग्रेनाइट पत्थर, गुड़ आदि के साथ लौह-अयस्क और लौह-केंद्रित के निर्यात को पूरा करता है।
  • कोच्चि पोर्ट, वेम्बानड कयाल के प्रमुख पर स्थित एक प्राकृतिक बंदरगाह बंदरगाह है; यह लोकप्रिय रूप से “अरब सागर की रानी” के रूप में जाना जाता है।

कोलकाता बंदरगाह

  • कोलकाता बंदरगाह एक नदी का बंदरगाह है जो हुगली नदी पर स्थित है; यह बंगाल की खाड़ी से 128 किमी अंतर्देशीय है।
  • हल्दिया पोर्ट कोलकाता से 105 किमी नीचे की ओर स्थित है।
  • कोलकाता बंदरगाह पर भीड़ को कम करने के लिए हल्दिया पोर्ट का निर्माण किया गया है।
  • हल्दिया पोर्ट लौह अयस्क, कोयला, पेट्रोलियम, पेट्रोलियम उत्पादों और उर्वरकों, जूट, जूट उत्पादों, कपास और कपास यार्न, आदि जैसे थोक कार्गो को संभालता है।

पारादीप पोर्ट

  • पारादीप पोर्ट कटक, ओडिशा से लगभग 100 किमी दूर महानदी डेल्टा पर स्थित है।
  • यह (पारादीप) पोर्ट में विशेष रूप से बहुत बड़े जहाजों को संभालने के लिए सबसे गहरा बंदरगाह है।
  • पारादीप पोर्ट बड़े पैमाने पर लौह-अयस्क का निर्यात संभालता है।
  • आंध्र प्रदेश में स्थित, विशाखापत्तनम बंदरगाह एक भूमि-बंद बंदरगाह है; जो ठोस चट्टान और रेत के माध्यम से एक चैनल द्वारा समुद्र से जुड़ा हुआ है।

विशाखापत्तनम पोर्ट

  • विशाखापत्तनम पोर्ट लौह-अयस्क, पेट्रोलियम और सामान्य कार्गो को संभालता है।
  • चेन्नई पोर्ट भारत के पूर्वी तट पर सबसे पुराने बंदरगाहों में से एक है।
  • एन्नोर तमिलनाडु में एक नया विकसित बंदरगाह है। चेन्नई बंदरगाह पर दबाव को कम करने के लिए इसका निर्माण चेन्नई से 25 किमी उत्तर में किया गया है।
  • तूतीकोरिन पोर्ट भी तमिलनाडु में स्थित एक महत्वपूर्ण बंदरगाह है। यह कोयला, नमक, खाद्यान्न, खाद्य तेल, चीनी, रसायन और पेट्रोलियम उत्पादों की आवाजाही को संभालता है।

अंतर्राष्ट्रीय हवाई विदेशी व्यापार का महत्व अड्डे

देश में 19 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे कार्य कर रहे थे (फरवरी 2013); हालाँकि, वर्तमान में, यह 20 है।

एयरवेज को गाड़ी के लिए कम से कम समय लेने और लंबी दूरी विदेशी व्यापार का महत्व पर उच्च मूल्य या खराब होने वाले सामान को संभालने का फायदा है; हालांकि, यह महंगा है और इसलिए भारी और अन्य मशीनरी उत्पादों के लिए उपयुक्त नहीं है।

विदेशी व्यापार अधिनियम

भारत में विदेशी कारोबार से संबंधित मुख्‍य विधान विदेशी कारोबार (विकास और विनियम) अधिनियम, 1992 है। इस अधिनियम में देश में होने वाले आयात द्वारा विदेशी कारोबार के विकास और विनियमन की सुविधा प्रदान की गई है और यह भारत से निर्यात तथा इससे जुड़े या आकस्मिक मामलों का भी विकास तथा विनियमन करता है।

Pradosh Vrat 2022: आज दो शुभ योगों एवं शिवरात्रि के संयोग के साथ होगा प्रदोष व्रत! जानें इसका महत्व

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया जाता है. प्रत्येक माह की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस बार साल का आखिरी प्रदोष आज पड़ रहा है, जिसे बहुत खास बताया जा रहा है, क्योंकि इस दिन प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि एक ही दिन पड़ रही है. ये दोनों तिथियां भगवान शिव को समर्पित होती हैं.

Pradosh Vrat 2022: आज दो शुभ योगों एवं शिवरात्रि के संयोग के साथ होगा प्रदोष व्रत! जानें इसका महत्व

Pradosh Vrat 2022: सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया जाता है. प्रत्येक माह की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है. इस बार साल का आखिरी प्रदोष आज पड़ रहा है, जिसे बहुत खास बताया जा रहा है, क्योंकि इस दिन प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि एक ही दिन पड़ रही है. ये दोनों तिथियां भगवान शिव को समर्पित होती हैं. इसके साथ-साथ इस दिन दो विशेष योग भी निर्मित हो रहे हैं. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार इस दिन भगवान शिव का व्रत-अनुष्ठान करने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे सारे संकट दूर होते हैं और निसंतानों को संतान प्राप्त होता है. आइये जानते हैं इस प्रदोष तिथि, इसके शुभ योगों, महत्व, पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त के बारे में. यह भी पढ़ें: Solar Eclipse and Lunar Eclipse in 2023: नये वर्ष में कब और कहां-कहां दिखेगा सूर्य एवं चंद्र ग्रहण? देखिये पूरी सूची!

बुध प्रदोष व्रत का महत्व

साल का आखिरी प्रदोष व्रत 21 दिसंबर, 2022 बुधवार को पड़ रहा है. बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष कहा जाता है. इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ उनके पूरे परिवार की पूजा कर उनका आशीर्वाद पाया जा सकता है. किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व शुरू होकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है. यह व्रत करके जीवन में धन की वृद्धि की जा सकती है. इससे सभी प्रकार के रोग, शोक, कलह, क्लेश हमेशा के लिए मिट जाते हैं.

बुध प्रदोषः शुभ मुहूर्त एवं दो शुभ योगों का महत्व

सर्वार्थ सिद्धि/अमृत सिद्धि योगः 08.33 AM से (21 दिसंबर 2022) से 06.33 AM (22 दिसंबर 2022) तक

मान्यता है कि पूजा-अनुष्ठान के लिए ये दोनों बहुत शुभ योग माने जाते हैं. सर्वार्थ सिद्धि योग में पूजा-पाठ का दुगना फल प्राप्त होता है, जबकि अमृत सिद्धि योग में व्रत एवं पूजा से अमृत समान फल प्राप्त होता है.

प्रदोष व्रत एवं अनुष्ठान के नियम

बुध प्रदोष के दिन व्रती को किसी भी तरह के नमक का सेवन नहीं करना चाहिए. इस दिन किसी से झगड़ा अथवा विवाद से बचें, साथ ही घर में तामसिक भोजन, तंबाकू और मदिरा आदि का सेवन किसी को भी नहीं करना चाहिए.

अब प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें. घर के वृद्ध परिजनों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें. अब तांबे के लोटे में जल एवं शक्कर मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें. 27 हरी दूर्वा की पत्तियों को कलावे से बांधकर उसमें सिंदूर लगाएं, और इसे गणेश जी को अर्पित करें. अब शिवलिंग पर दूध, शक्कर, शुद्ध घी अर्पित करने के बाद गंगाजल से स्नान कराएं. गणेश जी को लाल फल एवं पुष्प तथा भगवान शिव को चावल की खीर का भोग लगाएं. अब भगवान शिव का ध्यान कर निम्न मंत्र का 108 जाप करें.

‘ॐ नमः शिवाय’

भगवान शिव की पूजा सुबह और शाम प्रदोष काल में करें. ऐसा विदेशी व्यापार का महत्व करने से नौकरी व्यापार में लाभ के साथ मन की हर इच्छा पूरी होती है. यहां तक कि निसंतान दंपत्ति को संतान लाभ भी प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत की कथा सुनें या सुनाएं. अब भगवान गणेश, शिवजी एवं माता पार्वती की आरती उतार कर प्रसाद का वितरण करें. पूरे दिन व्रत रखते हुए सूर्यास्त के पश्चात पुनः शिवजी की पूजा करें.

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भारत व कनाडा के संबंधों विदेशी व्यापार का महत्व के बीच एक बड़ी बाधा है खालिस्तान का मुद्दा

टोरंटो (आईएएनएस)| सितंबर और नवंबर में हुआ खालिस्तान जनमत संग्रह 2022 में भारत-कनाडा संबंधों में एक बड़ी बाध बन गया। भारत ने विदेशी व्यापार का महत्व जनमत संग्रह को अतिवादियों और कट्टरपंथी तत्वों द्वारा आयोजित हास्यास्पद अभ्यास कहा और कनाडा से इस मामले में कार्रवाई करने के लिए कहा। एक एडवाइजरी में भारत सरकार ने कनाडा जाने वाले भारतीयों से वहां भारत विरोधी हिंसा की संभावना के बारे में सतर्क रहने का आग्रह किया।

कनाडा ने कहा कि वह भारत की अखंडता का समर्थन करता है, लेकिन वह विदेशी व्यापार का महत्व जनमत संग्रह को नहीं रोकेगा, क्योंकि उसके नागरिक विरोध करने के लिए स्वतंत्र हैं।

हालांकि ओटावा भारत को महत्व देने की कोशिश कर रहा है, जैसा कि हाल ही में घोषित भारत-प्रशांत रणनीति में रेखांकित किया गया है, जिसमें भारत को कनाडा का एक महत्वपूर्ण भागीदार कहा गया है।

नाम न छापने का अनुरोध करते हुए एक ब्रैम्पटन-आधारित इंडो-कनाडाई नेता ने कहा, हालांकि कोई भी कनाडा के रुख से सहमत हो सकता है कि यह स्वतंत्र अभिव्यक्ति को नहीं रोक सकता है, तथ्य यह है कि खालिस्तानी गतिविधियां भारत के आंतरिक मामलों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप हैं, क्योंकि अधिकांश खालिस्तानी तत्व अब कनाडा के पासपोर्ट वाले कनाडाई नागरिक हैं। भारत के लिए वे विदेशी हैं और कनाडा को उन पर लगाम लगानी चाहिए।

शीर्ष भारतीय कनाडाई राजनेता और कनाडा के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री उज्जल दोसांझ को लगता है कि खालिस्तान आंदोलन वस्तुत: खत्म चुका है, लेकिन कनाडा में कुछ तत्व पाकिस्तान के समर्थन से इसे जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं।

कनाडा में खालिस्तानियों के घोर आलोचक रहे दोसांझ ने कहा, मेरा मानना है कि खालिस्तान आंदोलन लगभग खत्म हो चुका है। अब यह पाकिस्तान द्वारा इन तत्वों का समर्थन करके इसे जीवित रखने के बारे में अधिक है।

दोसांझ कनाडा में खालिस्तानी तत्वों की गतिविधियों पर भारत के बयानों की भी आलोचना करते हुए कहते हैं कि ये बयान खालिस्तानी तत्वों के लिए ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, जो प्रवासी भारतीयों का एक बहुत छोटा हिस्सा हैं।

दोसांझ ने कहा, मामले को गंभीरता से लेकर भारत इस मृतप्राय आंदोलन में जान डाल रहा है। यही खालिस्तानी तत्व चाहते हैं।

हालांकि ब्रैम्पटन में रहने वाले वरिष्ठ पंजाबी पत्रकार बलराज देओल का कहना है कि भारत को इस मुद्दे पर अपना रुख सख्त करना चाहिए।

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