जब बाजार में किसी वस्तु अथवा सेवा का मात्र एक विक्रेता होता है तो उसे उस वस्तु या सेवा की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण रहता है क्योंकि उसका कोई दूसरा प्रतियोगी नहीं होता हैं। प्रतियोगियों के अभाव में एकाधिकारी अपनी वस्तु का अपनी इच्छा से जो मूल्य चाहता है वह उस मूल्य को रखने के लिए आजाद रहता हैं।

सम सीमांत नियम क्या है | सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्व बताइये | Sam simant upyogita niyam ki simaye likhiye

निजी जीवन में देखा जाए तो उपभोक्ताओं की आय प्रायः सीमित ही होती है और आवश्यकताएं असीमित। उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं का अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उपयोग करता है। हम सभी उपभोक्ताओं के सामने यही एक धर्मसंकट होता है कि हम अपनी इस सीमित आय को अपनी आवश्यकताओं की वस्तुओं या सेवाओं पर व्यय करके अधिकतम संतुष्टि कैसे प्राप्त करें ।

प्रत्येक व्यक्ति अपनी सीमित आय को इस प्रकार ख़र्च करना चाहता है कि वह अपनी उन सभी वस्तुओं की सीमांत उपयोगिताओं को समान कर सके। यही सम सीमांत अवधारणा भी कहलाती है। आज हम इस अंक में सम सीमांत उपयोगिता नियम क्या है? पढ़ेंगे।

सम सीमांत उपयोगिता नियम की व्याख्या (sam simant upyogita niyam ki vyakhya) इस तथ्य के आधार पर की जाती है कि 'कोई उपभोक्ता अपनी सीमित आय को विभिन्न वस्तुओं पर किस तरह व्यय करे कि उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो।' उपभोक्ता जब अपनी अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है तब उस दशा को उपभोक्ता का संतुलन (upbhokta ka santulan) कहा जाता है। सम सीमांत उपयोगिता नियम, उपभोक्ता के इसी संतुलन को व्यक्त करता है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम के प्रतिपादक कौन थे? तो हम आपको बता दें कि इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम गोसेन ने किया था। यही कारण है कि इसे "गोसेन का दूसरा नियम" Gosen ka dusra niyam भी कहा जाता है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम की परिभाषा (Definition of equi marginal utility law in hindi)

प्रो. मार्शल द्वारा दिया गया सम सीमांत उपयोगिता नियम का कथन एक ऐसी वस्तु के संबंध में था। जिसे विभिन्न प्रयोगों में प्रयुक्त किया जा सकता है। जैसे कि मुद्रा। अर्थात मुद्रा ही एक ऐसी वस्तु है जिसे उत्पादक द्वारा अनेक प्रयोग में लाया सकता है।

" एक उपभोक्ता अपनी सीमित आय (मुद्रा) से अधिकतम संतुष्टि तभी प्राप्त कर सकता है जब वह मुद्रा रूपी अपनी आय को विभिन्न वस्तुओं के लिए इस प्रकार व्यय करे कि सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? प्रत्येक वस्तु पर व्यय की गई मुद्रा की अंतिम इकाई से प्राप्त उपयोगिता (सीमांत उपयोगिता) एक समान हो। "

सम सीमांत नियम की मान्यताएं (Assumptions of the law of equi-marginal utility in hindi)

(1) इस नियम में यह मान्यता है कि उपभोक्ता एक विवेकशील प्राणी है। यानि कि अपनी सीमित आय को व्यय करते हुए किस प्रकार अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना है। वह उपभोक्ता जानता है।

(2) इस नियम में यह माना जाता है कि मुद्रा की सीमांत उपयोगिता समान रहती है। यानि कि मुद्रा की मात्रा में कमी हो अथवा वृद्धि। उसकी सीमांत उपयोगिता नहीं बदलती।

(3) इस नियम में यह मान लिया जाता है कि उपभोक्ता की आय, फ़ैशन, रुचि इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये सभी स्थिर होती हैं।

(4) इस नियम में यह भी एक विशेष मान्यता है कि उपयोगिता, मुद्रा रूपी सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? पैमाने से नापी जा सकती है। अर्थात मुद्रा के रूप में उपयोगिता मापनीय है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्व (Importance of the law of equi-marginal utility in hindi)

सम सीमांत उपयोगिता नियम का महत्व sam simant upyogita niyam ka mahatva विभिन्न क्षेत्रों में अनेक परिस्थितियों में दिखाई देता है। आइये इसके महत्व को निम्न बिंदुओं के माध्यम से संमझते हैं-

(1) उपभोग के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के आधार पर उपभोक्ता इस बात का निर्णय कर सकता है कि वह अपनी आय में से कितना वर्तमान में व्यय करे तथा कितना भविष्य के लिए बचाकर रखे। वर्तमान व्यय तथा भविष्य के लिए की गयी बचत की सीमांत उपयोगिताएं समान होने पर ही उपभोक्ता की संतुष्टि अधिकतम होगी।

(2) उत्पादन के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम की मदद से उत्पादक अपनी लागतों को न्यूनतम करके अपने लाभों को अधिकतम कर सकते हैं। सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? उत्पादक को अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होता है जब वह कम प्रतिफल (लाभ) देने वाले साधन को तब तक प्रतिस्थापित करता रहे जब तक कि सभी साधनों का सीमांत प्रतिफल (सीमांत लाभ) बराबर न हो जाये।

(3) विनिमय के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के आधार पर ही हम बाज़ार में मुद्रा द्वारा वस्तु ख़रीदते समय वस्तु से मिलने वाली उपयोगिता तथा त्यागी गयी मुद्रा की उपयोगिता को समान करने का सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? प्रयत्न करते हैं। जिससे हमें विनिमय क्रिया से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सके।

(4) वितरण के क्षेत्र में प्रयोग- सम सीमांत उपयोगिता नियम वितरण के क्षेत्र में उत्पादन के विभिन्न साधनों के पुरस्कार, जैसे- मज़दूरी, ब्याज़, लाभ आदि का निर्धारण करने में मदद करता है।

(5) राजस्व के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के द्वारा ही सरकार विभिन्न वर्गों पर इस प्रकार कर लगाती है कि सभी वर्गों का सीमांत त्याग बराबर हो जाये। इससे कुल समाज का कुल त्याग न्यूनतम हो जाता है। इस आधार पर सरकार विभिन्न मदों पर व्यय इस प्रकार विभाजित करती है कि प्रत्येक मद से मिलने वाली सीमांत सामाजिक उपयोगिता बराबर हो। इससे सामाजिक कल्याण अधिकतम हो जाता है।

मार्जिनल टैक्स रेट सिस्टम कैसे काम करता है?

सीमांत कर दर आय का प्रत्येक अतिरिक्त डॉलर पर अपने ऊपर लेना कर आय अर्जक की दर है। जैसा कि सीमांत कर की दर बढ़ जाती है, करदाता प्रति डॉलर कम पैसे के साथ समाप्त हो जाता है, जितना कि वे पहले अर्जित डॉलर पर बनाए रखते हैं। सीमांत कर दरों को नियोजित करने वाली कर प्रणालियां विभिन्न कर दरों को आय के विभिन्न स्तरों पर लागू करती हैं; जैसे ही आय बढ़ती है, इस पर उच्च दर से कर लगाया जाता है। यह नोट करना महत्वपूर्ण है, हालांकि, आय पर एक दर से कर नहीं लगाया जाता है, बल्कि कई दरों के रूप में यह सीमांत कर अनुसूची के पार जाता है।

सीमांत दर का लक्ष्य करदाताओं के कंधों पर सरकार का समर्थन करने का बोझ अधिक आर्थिक रूप से सक्षम करना है, ताकि करदाताओं की परेशानी के लिए समान रूप से बोझ न फैलाया जा सके, जबकि समस्याओं को संतुलित करने का प्रयास नहीं किया जा सकता है। सीधे प्रगतिशील दर ।

चाबी छीन लेना

  • सीमांत कर की दर प्रत्येक आय के अतिरिक्त डॉलर पर कर आय वालों की दर है।
  • आधुनिक अर्थशास्त्र में उपयोग की जाने वाली अन्य कर प्रणाली फ्लैट टैक्स है, जिसमें व्यक्ति की आय की परवाह किए बिना, दर में बदलाव नहीं होता है।
  • हालाँकि अधिक धन कमाने से आयकर की दर बढ़ सकती है, फिर भी एक बड़ी आय पर एक से अधिक स्तरों पर कर लगाया जाएगा।

फ्लैट कर प्रणाली

आधुनिक अर्थशास्त्र में उपयोग की जाने वाली अन्य कर प्रणाली फ्लैट कर है ।फ्लैट करों के साथ, व्यक्ति की आय की परवाह किए बिना, दर नहीं बदलती है।कोई व्यक्ति कितना भी बना ले, उन्हें एक ही प्रतिशत पर कर लगेगा।फ्लैट करों के समर्थकों का तर्क है कि यह प्रणाली उचित है क्योंकि यह सभीव्यक्तियों और व्यवसायों को एक ही दर से कर देता है, बजाय उनकी आय के स्तरों को ध्यान में रखे।फ्लैट टैक्स सिस्टम आमतौर पर कटौती की अनुमति नहीं देते हैं।कराधान का यह रूप अक्सर उन देशों के साथ जुड़ा हुआ है जिनकी बढ़ती अर्थव्यवस्था है, लेकिन विकास के एकमात्र कारण के रूप में फ्लैट कर का समर्थन करने के लिए बहुत कम सबूत हैं।

सीमांत कर दर उदाहरण

उपरोक्त सीमांत कर दर अनुसूची का एक सरल उदाहरण है। यह उस दर को दिखाता है जिस पर आय के विभिन्न स्तरों पर कर लगाया जाता है। जैसे ही आय बढ़ती है, पिछले स्तर से ऊपर की प्रत्येक आय पर उच्च दर से कर लगाया जाता है। यदि एक करदाता अधिक पैसा कमाता है और उच्च आय स्तर में चला जाता है, तो सीमांत कर दरें अतिरिक्त आय के लाभ को काफी कम कर सकती हैं क्योंकि यह उच्च दर पर कर लगाया जाएगा। परिणामस्वरूप, कुछ लोगों का मानना ​​है कि सीमांत कर की दरें अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हैं क्योंकि वे लोगों को अधिक पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत करने से हतोत्साहित करते हैं। यद्यपि अधिक धन कमाने से आयकर दर में वृद्धि हो सकती है , फिर भी एक बड़ी आय पर एक से अधिक स्तरों पर कर लगाया जाएगा। नीचे दी गई तालिका बताती है कि सीमांत कर की दर कैसे काम करती है।

जैसा कि ऊपर दी गई तालिका से पता चलता है, $ 0 से $ 120,000 तक की आय के मामले में उदाहरण के बारे में सोचना सबसे अच्छा हो सकता है। जैसे-जैसे यह $ 120,000 की ओर बढ़ता है, यह विभिन्न कर दरों को लागू करता है। इसलिए, $ 0 और $ 20,000 के बीच आय पर 10% कर लगाया जाता है, इसलिए कर बकाया $ 2,000 ($ 20,000 x 10%) है। फिर आय एक नए सीमांत कर की दर (20%) में चली जाती है। जैसे ही यह $ 20,000 से ऊपर बढ़ता है, $ 120,000 की आय कमाने वाले पर पहले $ 20,000 के कर के 2,000 डॉलर के अतिरिक्त आय के इस हिस्से के लिए कर में $ 4,000 ($ 20,000 x 20%) का बकाया होता है। यह करदाता की कुल आय तक प्रत्येक आय स्तर पर किया जाता है, इस मामले में, $ 120,000। ऊपर कर की दर अनुसूची के आधार पर, $ 120,000 आय आय सीमांत मूल्य प्रणाली के आधार पर करों में कुल $ 38,000 का भुगतान करती है।

यह उदाहरण भी दिखाता है कि इस करदाता की सभी आय पर एक ही दर से कर नहीं लगता है। इसलिए, न्यूनतम आय स्तर पर केवल $ 2,000 का कर बकाया सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? है, जबकि 6,000 डॉलर का कर उसी धन राशि ($ 20,000) पर तीसरे स्तर पर लगाया जाता है। बहुत से लोग सीमांत कर दरों से भ्रमित होते हैं, जिस दर पर उन पर कर लगाया जाएगा उस पर विश्वास करते हुए आय स्तर के आधार पर एक फ्लैट दर होती है जिसमें वे गिर जाते हैं। इस गलत धारणा के अनुसार, $ 120,000 की आय पर 50% की दर से कर लगेगा, जिससे कर की राशि 60,000 डॉलर हो जाएगी।

सीमांत आय क्या निर्धारित करती है?

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पूँजी की सीमांत कुशलता की अवधा .

Solution : प्रतिफल की वह दर जो पूँजी पर भविष्य के संभावित प्रतिफल से उसके वर्तमान मूल्य की तुलना करती है अर्थात् अतिरिक्त पूँजी पर होने वाली अतिरिक्त आय को प्रदर्शित करती है, पूँजी की सीमांत कुशलता (उपयोगिता) कहलाती है।
इसका मापन अतिरिक्त पूँजी से प्राप्त अतिरिक्त काम के आधार पर किया जाता है। यानि एक इकाई पूँजी की वृद्धि करते जाने पर कितनी अतिरिक्त (वस्तु) आय प्राप्त होती है।

एकाधिकार से आप क्या समझते हैं | What Is Monopoly In Hindi

एकाधिकार अर्थात् किसी वस्तु अथवा सेवा का मात्र एक उत्पादक होता है। यह शब्द अधिक महत्वपूर्ण है इसे जाना आपके लिए बेहद जरूरी हैं। इस आर्टिकल में एकाधिकार से आप क्या समझते हैं, एकाधिकार में मूल्य निर्धारित कैसे होता है आदि विषय के बारे में चर्चा की गई है।

एकाधिकार से आप क्या समझते हैं?

एकाधिकार एक अंग्रेजी शब्द Monopoly से मिलकर बना हुआ है जिसमें ‘Mono’ का अर्थ मात्र से और Poly का अर्थ विक्रेता से लगाया जाता है। इस प्रकार से Monopoly या एकाधिकार का अर्थ होता है एकमात्र विक्रेता अथवा Single Seller.

जब बाजार में किसी वस्तु अथवा सेवा का मात्र एक उत्पादक होता है तो उसे एकाधिकारी ( Monopolist ) कहा जाता है।

इस प्रकार एकाधिकार का अर्थ है एक ही उत्पादक द्वारा किया गया उद्योग अथवा एक ही विक्रेता द्वारा किया गया विक्रय ।

एकाधिकार के बारे में संक्षेप में लिखें ।

जब बाजार में किसी वस्तु अथवा सेवा का मात्र एक विक्रेता होता है तो उसे उस वस्तु या सेवा की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण रहता है क्योंकि उसका कोई दूसरा प्रतियोगी नहीं होता हैं। सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? प्रतियोगियों के अभाव में एकाधिकारी अपनी वस्तु का अपनी इच्छा से जो मूल्य चाहता है वह उस मूल्य को रखने के लिए आजाद रहता हैं।

इस प्रकार एकाधिकार पूर्ण प्रतियोगिता के विपरीत की बाजार स्थिति है क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार में विक्रेताओं की संख्या अगणित रहती है और साथ ही उनमें प्रतियोगिता भी होती है। इसलिए कोई भी एक विक्रेता पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार में वस्तु का मनचाहा मूल्य नहीं निर्धारित कर सकता।

साथ ही पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार में किसी एक विक्रेता को वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण अधिकार अथवा पूर्ण नियंत्रण भी नहीं रहता हैं। इस प्रकार एकाधिकार की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता के विपरीत है। एकाधिकार जिस वस्तु का विक्रय करता है उसका विक्रय दूसरा उत्पादक नहीं कर पाता है।

उदाहरण के लिए प्रत्येक शहर में बिजली आपूर्ति तथा जल आपूर्ति की एक ही कंपनी होती है जो पूरे शहर भर में बिजली आपूर्ति का काम करती है उस शहर में बिजली की दूसरी कंपनी नहीं होती इसलिए बिजली कंपनी एकाधिकार की स्थिति में रहती है। इस प्रकार से जल पूर्ति की कंपनी भी एकाधिकार की स्थिति में रहती है क्योंकि जल आपूर्ति की भी एक ही कंपनी होती है।

एकाधिकार में मूल्य निर्धारित कैसे होता हैं?

एकाधिकार के मूल्य निर्धारण के संबंध में प्रो मार्शल और जॉन राविन्स के सिद्धांत एक जैसे नहीं है दोनों के सिद्धांत बिल्कुल अलग- अलग हैं।

प्रो मार्शल का सिद्धांत – एकाधिकार में मूल्य निर्धारण के संबंध में प्रो मार्शल ने जांच व भूल के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। उनका कहना है कि एकाधिकार अपने एकाधिकार लाभ को अधिकतम करने के लिए अपनी वस्तु के संबंध में दो बातों को जानना चाहता है और फिर जांच और भूल के आधार पर ऐसा मूल्य निर्धारित करता है जिससे उसे अधिकतम एकाधिकार लाभ की प्राप्ति हो।

एकाधिकार जिन दो बातों का जिक्र करता है वह निम्नलिखित हैं-

  • वह अपनी वस्तु की मांग की लोच जाना चाहता हैं।
  • वह उत्पादन व्यय जाना चाहता हैं।

उत्पादन व्यय की प्रवृत्ति को जानने के लिए उसे उत्पत्ति के नियमों को जाना पड़ता है। उसे यह जानने के लिए कि उत्पादन बढ़ाने से उत्पादन बढ़ता है या घटता है या समान रहता है उसे अलग-अलग क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम, क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम, क्रमागत उत्पत्ति क्षमता नियम की जानकारी प्राप्त करके यह देखना पड़ता है कि उसके उत्पादन से उत्पत्ति का कौन सा नियम क्रियाशील होता है।

मांग की लोच और उत्पत्ति के नियम को जानकर वह जांच और भूल के आधार पर ऐसा मूल्य निर्धारित करता हैं जिसमें उसका एकाधिकार लाभ अधिकतम हो। एकाधिकार पूर्ति और मूल्य दोनों ही पर पूर्ण अधिकार रखता है परंतु मांग पर उसका कोई अधिकार नहीं है।

प्रो मार्शल के सिद्धांत की त्रुटियाँ

प्रो मार्शल के द्वारा प्रतिपादन एकाधिकार में मूल्य निर्धारण के उपरोक्त सिद्धांतों की आलोचना करते हुए जॉन रॉबिंसन ने कहा है कि मार्शल का सिद्धांत अवैज्ञानिक एवं त्रुटिपूर्ण हैं। जांच और भूल के आधार पर एकाधिकार बहुत सी परिस्थितियों में एकाधिकार लाभ नहीं प्राप्त कर सकता क्योंकि उसे निश्चित रूप से उस बिंदु का ज्ञान नहीं रहता जहां पर मूल्य निर्धारित करने सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? से उसे अधिकतम मुनाफा भी प्राप्त होगा। इस सिद्धांत में अनिश्चितता और स्पष्टता पाई जाती हैं।

राबिन्स का सिद्धांत

रॉबिंसन के अनुसार एकाधिकारी का उद्देश्य “शुद्ध एकाधिकार आय” (Net Monopoly Revenue) प्राप्त करना अथवा अधिकतम मुनाफा प्राप्त करना रहता है या अधिकतम मुनाफा प्राप्त करना रहता हैं। यह अधिकतम आय तभी प्राप्त हो सकती हैं जब एकाधिकार उस बिंदु पर मूल्य निर्धारण करता है जहां उसकी सीमांत आय उसके सीमांत व्यय के बराबर हो जाती है इसलिए उनका कहना हैं

Monopoly Price = Marginal Revenue – Marginal Cost

रॉबिंसन का कथन है कि एकाधिकारी के लिए उस बिंदु पर मूल्य निर्धारित करना सबसे अधिक मुनाफा प्रदान करने वाला होगा जहां सीमांत आय और सीमांत व्यय बराबर है।

उनके अनुसार से मान लिया जाए कि एकाधिकारी ऐसा मूल्य रखता है जिसमें सीमांत आय सीमांत व्यय से अधिक है तो उसे अधिकतम मुनाफा नहीं मिलेगा। सीमांत आय जब सीमांत व्यय से अधिक है तो इसका अर्थ यह है कि एकाधिकार उत्पादन की मात्रा को बढ़ाकर अपनी आमदनी को बढ़ा सकता हैं।

यदि एकाधिकार मूल्य किसी कारणवश ऐसा हो कि सीमांत व्यय सीमांत आय से अधिक हो जाए तो ऐसी स्थिति में एकाधिकारी को मुनाफा की जगह पर घाटा होगा और वह उत्पादन की मात्रा को कम करेगा और वह उत्पादन की मात्रा उस समय तक काम करता चला जाएगा जब तक कि सीमांत व्यय सीमांत व्यय के बराबर न हो जाए।

इस प्रकार जब सीमांत आय सीमांत व्यय से अधिक हो तो उसे और मुनाफा प्राप्त करने का अवसर शेष हैं और सीमांत व्यय जब सीमांत आय से अधिक हो तो उसे मुनाफा की जगह पर घाटा होता है इसलिए उसके लिए अधिक लाभ प्रदान करने का बिन्दु वह है जहां सीमांत आय सीमांत व्यय के बराबर हैं।

एकाधिकार मूल्य का निर्धारण उसी बिंदु पर होता है जहां सीमांत आय सीमांत व्यय हो के बराबर होता हैं। इस प्रकार से

सम सीमांत नियम क्या है | सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्व बताइये | Sam simant upyogita niyam ki simaye likhiye

निजी जीवन में देखा जाए तो उपभोक्ताओं की आय प्रायः सीमित ही होती है और आवश्यकताएं असीमित। उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं का अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उपयोग करता है। हम सभी उपभोक्ताओं के सामने यही एक धर्मसंकट होता है कि हम अपनी इस सीमित आय को अपनी आवश्यकताओं की वस्तुओं या सेवाओं पर व्यय करके अधिकतम संतुष्टि कैसे प्राप्त करें ।

प्रत्येक व्यक्ति अपनी सीमित आय को इस प्रकार ख़र्च करना चाहता है कि वह अपनी उन सभी वस्तुओं की सीमांत उपयोगिताओं को समान कर सके। यही सम सीमांत अवधारणा भी कहलाती है। आज हम इस अंक में सम सीमांत उपयोगिता नियम क्या है? पढ़ेंगे।

सम सीमांत उपयोगिता नियम की व्याख्या (sam simant upyogita niyam ki vyakhya) इस तथ्य के आधार पर की जाती है कि 'कोई उपभोक्ता अपनी सीमित आय को विभिन्न वस्तुओं पर किस तरह व्यय करे कि उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो।' उपभोक्ता जब अपनी अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है तब उस दशा को उपभोक्ता का संतुलन (upbhokta ka santulan) कहा जाता है। सम सीमांत उपयोगिता नियम, उपभोक्ता के इसी संतुलन को व्यक्त करता है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम के प्रतिपादक कौन थे? तो हम आपको बता दें कि इस नियम का प्रतिपादन सर्वप्रथम गोसेन ने किया था। यही कारण है कि इसे "गोसेन का दूसरा नियम" Gosen ka dusra niyam भी कहा जाता है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम की परिभाषा (Definition of equi marginal utility law in hindi)

प्रो. मार्शल द्वारा दिया गया सम सीमांत उपयोगिता नियम का कथन एक ऐसी वस्तु के संबंध में था। जिसे विभिन्न प्रयोगों में प्रयुक्त किया जा सकता है। जैसे कि मुद्रा। अर्थात मुद्रा ही एक ऐसी वस्तु है जिसे उत्पादक द्वारा अनेक प्रयोग में लाया सकता है।

" एक उपभोक्ता अपनी सीमित आय (मुद्रा) से अधिकतम संतुष्टि तभी प्राप्त कर सकता है जब वह मुद्रा रूपी अपनी आय को विभिन्न वस्तुओं के लिए इस प्रकार व्यय करे कि प्रत्येक वस्तु पर व्यय की गई मुद्रा की अंतिम इकाई से प्राप्त उपयोगिता (सीमांत उपयोगिता) एक समान हो। "

सम सीमांत नियम की मान्यताएं (Assumptions of the law of equi-marginal utility in hindi)

(1) इस नियम में यह मान्यता है कि उपभोक्ता सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? एक विवेकशील प्राणी है। यानि कि अपनी सीमित आय को व्यय करते हुए किस प्रकार अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना है। वह उपभोक्ता जानता है।

(2) इस नियम में यह माना जाता है कि मुद्रा की सीमांत उपयोगिता समान रहती है। यानि कि मुद्रा की मात्रा में कमी हो अथवा वृद्धि। उसकी सीमांत उपयोगिता नहीं बदलती।

(3) इस नियम में यह मान लिया जाता है कि उपभोक्ता की आय, फ़ैशन, रुचि इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं होता है। ये सभी स्थिर होती हैं।

(4) इस नियम में यह भी एक विशेष मान्यता है कि उपयोगिता, मुद्रा रूपी पैमाने से नापी जा सकती है। अर्थात मुद्रा सीमांत आय क्या निर्धारित करती है? के रूप में उपयोगिता मापनीय है।

सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्व (Importance of the law of equi-marginal utility in hindi)

सम सीमांत उपयोगिता नियम का महत्व sam simant upyogita niyam ka mahatva विभिन्न क्षेत्रों में अनेक परिस्थितियों में दिखाई देता है। आइये इसके महत्व को निम्न बिंदुओं के माध्यम से संमझते हैं-

(1) उपभोग के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के आधार पर उपभोक्ता इस बात का निर्णय कर सकता है कि वह अपनी आय में से कितना वर्तमान में व्यय करे तथा कितना भविष्य के लिए बचाकर रखे। वर्तमान व्यय तथा भविष्य के लिए की गयी बचत की सीमांत उपयोगिताएं समान होने पर ही उपभोक्ता की संतुष्टि अधिकतम होगी।

(2) उत्पादन के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम की मदद से उत्पादक अपनी लागतों को न्यूनतम करके अपने लाभों को अधिकतम कर सकते हैं। उत्पादक को अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होता है जब वह कम प्रतिफल (लाभ) देने वाले साधन को तब तक प्रतिस्थापित करता रहे जब तक कि सभी साधनों का सीमांत प्रतिफल (सीमांत लाभ) बराबर न हो जाये।

(3) विनिमय के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के आधार पर ही हम बाज़ार में मुद्रा द्वारा वस्तु ख़रीदते समय वस्तु से मिलने वाली उपयोगिता तथा त्यागी गयी मुद्रा की उपयोगिता को समान करने का प्रयत्न करते हैं। जिससे हमें विनिमय क्रिया से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सके।

(4) वितरण के क्षेत्र में प्रयोग- सम सीमांत उपयोगिता नियम वितरण के क्षेत्र में उत्पादन के विभिन्न साधनों के पुरस्कार, जैसे- मज़दूरी, ब्याज़, लाभ आदि का निर्धारण करने में मदद करता है।

(5) राजस्व के क्षेत्र में प्रयोग- इस नियम के द्वारा ही सरकार विभिन्न वर्गों पर इस प्रकार कर लगाती है कि सभी वर्गों का सीमांत त्याग बराबर हो जाये। इससे कुल समाज का कुल त्याग न्यूनतम हो जाता है। इस आधार पर सरकार विभिन्न मदों पर व्यय इस प्रकार विभाजित करती है कि प्रत्येक मद से मिलने वाली सीमांत सामाजिक उपयोगिता बराबर हो। इससे सामाजिक कल्याण अधिकतम हो जाता है।

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