गुजरात मॉडलः अंजीर की खेती करने वाली पहली महिला, लॉकडाउन ने बदली किस्मत, लाखों में करती है कमाई
Fig farming success story in India : विलासबेन पूरी तरह से जैविक खेती करती है. उनके अंजीर की तुलना अफगानिस्तान के अंजीर से होती है. यहां लोगों का मानना है कि विलासबेन के अंजीर अफगानिस्तान से भी बेहतर और ज्यादा मीठे हैं.
कोरोना वायरस ने करोड़ों लोगों की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया. बड़ी संख्या में लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी या फिर अपना ठिकाना बदलना पड़ा. बहुत से लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने इस महामारी की वजह से अपनों को खो दिया. ऐसी ही दर्दनाक आसानी से स्टॉक मार्केट सीखे कहानियों के बीच बदलाव की भी कुछ बयार देखी गई. गुजरात के अमरेली की विलासबेन सवसैया की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वह अपने जिले में अंजीर की खेती करने वाली पहली महिला है. उसने पिछले ढाई साल में तीन फसल लेते हुए बंपर कमाई की है.
विलासबेन पूरी तरह से जैविक खेती करती है. उनके अंजीर की तुलना अफगानिस्तान के अंजीर से होती है. यहां लोगों का मानना है कि विलासबेन के अंजीर अफगानिस्तान आसानी से स्टॉक मार्केट सीखे से भी बेहतर और ज्यादा मीठे हैं.
10 लाख रुपए की कमाई-कोरोना में लाखों लोगों वापस अपने गांव लौट आए थे. उनमें विलासबेन भी थी. वह और उनका परिवार सूरत से अमरेली जिले में अपने गांव आंकडिया लौटकर आ गया था. यहां उन्होंने अपनी सात बीघा जमीन पर पहली बार अंजीर का पौधा लगाया. वह जिले में अंजीर की खेती करने वाली पहली महिला किसान है. अपनी आजीविका के लिए फसल का पैटर्न बदलने का उनका यह प्रयोग अब पूरे गुजरात में चर्चा का विषय बन गया है.
विलासबेन ने साल 2020 से अब तक अपने खेतों में अंजीर के पेड़ों की संख्या 3400 कर ली है. इससे आसानी से स्टॉक मार्केट सीखे उन्होंने तीन बार फसल ली है, जिससे उन्हें 8 से 10 लाख रुपए की कमाई हुई है. वह पूरी तरह से जैविक खेती करते है. इस वजह से उनके प्रोडक्ट को स्थानीय मार्केट और आसपास के जिलों में काफी पंसद किया जा रहा है.
पति ने चीन में सीखा और मलेशिया से लाए पौधे-विलासबेन के पति दिनेशभाई चीन में एक फॉर्म हाऊस में काम करते थे. वहां उन्होंने अंजीर की खेती के बारे में काफी कुछ सीखा था. उन्होंने अपनी पत्नी को न केवल इसकी खेती के लिए प्रेरित किया, बल्कि उनकी टिप्स को अमल में लाकर पत्नी भी अब पूरे राज्य के लिए रोल मॉडल बन गई है.
हालांकि, विलासबेन और उनके परिवार के लिए अंजीर की खेती शुरू करना आसानी से स्टॉक मार्केट सीखे कोई आसान नहीं था. लॉकडाउन की वजह से अंजीर के पौधे मिलना संभव नहीं थे. इस वजह से किसी तरह मलेशिया से पहले आंंध्रप्रदेश और फिर वहां से पौधे आंकडिया गांव में लाए गए. इस तरह खेती में नए बदलाव की इबारत लिखना शुरू हुआ, जिसे अब राज्य सरकार भी प्रोत्साहित कर रही है.
विलासबेन कहती हैं, 'लॉकडाउन लगने के बाद परिवार के सारे सदस्य सूरत से आंकड़िया गांव आ गए. यहां पहली बार उन्हें अंजीर की खेती करने का ख्याल आया. उनके इस प्रस्ताव पर पति और बच्चों ने भी हामी भरते हुए पूरी मदद का भरोसा दिया. परिवार से मिले समर्थन के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. कड़ी मेहनत की और अब पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गई हूं.'
प्रगतिशील किसान का दर्जा-विलासबेन और उनके पति को प्रगतिशील किसान का दर्जा दिया गया है. अब इस दंपत्ति ने चीन से प्रोसेसिंग मशीन लाई है. अंजीर को प्रोसेस करके खुले बाजार में बेचा जाता है. प्रसंस्कृत अंजीर की कीमत खुले बाजार में 1,200 रुपये से 1,600 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई. इस अंजीर को वह वर्तमान में अमरेली और आसपास के जिलों के साथ ही सूरत में बेच रहे हैं. पूरी तरह से जैविक अंजीर होने के कारण, बड़ी संख्या में लोग उनके अंजीर पसंद करते हैं क्योंकि वे अफगानिस्तान से आयातित अंजीर की तुलना में मीठे होते हैं.
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