7. समय बचत - भुगतान की तिथि निश्चित होने के कारण निर्यातकर्ता को बार बार आयातकर्ता के पास रुपया मांगने के लिए नही जाना पड़ता जिससे समय की बचत होती है।
आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार की भूमिका | Role of Foreign Trade in Economic Development | Hindi
आर्थिक विकास में विदेशी व्यापार की भूमिका | Read this article in Hindi to learn about the role of foreign trade in economic development.
आर्थिक विकास में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की भूमिका विचारणीय है । इसने विकास के इंजन के रूप में कार्य किया है, जैसा कि उन्नीसवीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में और बीसवीं शताब्दी में जापान में देखा गया है ।
यहां तक कि आजकल भी एशिया की नई उद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं जैसे हांगकांग, सिंगापुर, ताइवान और दक्षिणी कोरिया आदि द्वारा अपनायी गयी बाह्य-प्रवृतिक विकास विदेशी व्यापार का महत्व नीति ने निर्धन अल्प विकसित देशों को कम साधनों से निपटने के योग्य बनाया है ।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार अनेक प्रकार से आर्थिक विकास में योगदान करता है:
1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पूंजीगत वस्तुओं के आयात के साधन खोजने में सहायता करता है जिनके बिना आर्थिक विकास की कोई प्रक्रिया आरम्भ नहीं हो सकती ।
विदेशी व्यापार कितने प्रकार के होते हैं?
इसे सुनेंरोकेंविदेशी व्यापार के अनेक लाभ हैं… देश में अधिक उत्पादित होने वाली वस्तुओं का निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित करना में मदद मिलती है। इस विदेशी मुद्रा का उपयोग देश की उन्नति के काम में लगाया जा सकता है। व्यापार से दो देशों के बीच पारस्परिक सहयोग बढ़ता है। संकट के समय दो देशों द्वारा एक दूसरे की मदद की जा सकती है।
विदेशी व्यापार, प्रकार और महत्व (Foreign Trade, Types &…
- विदेशी व्यापार:
- विदेशी व्यापार के प्रकार
- आयात व्यापार – जब विदेशों से माल मंगाया जाता है तो उसे आयात व्यापार कहते हैं।
- निर्यात व्यापार विदेशी व्यापार का महत्व –
- पुन: निर्यात व्यापार –
- विदेशी व्यापार का महत्व:
- Foreign trade:
आयात निर्यात का अर्थ क्या होता है?
इसे सुनेंरोकेंआयात-निर्यात संस्कृत [संज्ञा पुल्लिंग] बाहर से सामान मँगाना और सामान बाहर भेजना।
आयात निर्यात का मतलब क्या होता है?
इसे सुनेंरोकेंवस्तुओं एवं सेवाओं को किसी देश से दूसरे देशों में भेजना निर्यात (export) कहलाता है। किसी भी तरह के उत्पादों या सेवओं को बाहर के किसी देश को बेंचनें निर्यात को कहते है। निर्यात का उल्टा होता है आयात।
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विदेश व्यापार का अर्थ-
प्रो. बेस्टेबिल- ‘सामाजिक विज्ञान की दृष्टि कोण से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विभिन्न समुदाओं के बीच होने वाला व्यापार है अर्थात् यह उन विभिन्न सामाजिक संगठनों के बीच होने वाला व्यापार है, जिन्हें समाजशास्त्र अपने अन्वेषण का क्षेत्र मानता है।’
फेडरिक लिस्ट- ‘आंतरिक व्यापार हमारे बीच है तथा विदेशी व्यापार हमारे और उनकें ;दूसरे देशों के बीचद्धबीच होता है।’
संक्षेप में कहा जा सकता है कि देश की सीमाओं के भीतर होने वाला विदेशी व्यापार का महत्व व्यापार अंतरसेवीय या राष्ट्रीय व्यापार कहलाता है तथा देश की सीमाओं के विभिन्न देशों के बीच होने व्यापार अंतर्राष्ट्रीय/विदेशी व्यापार कहलाता है। विदेशी व्यापार एक देश दूसरे देश के साथ लाभ के सिद्धांतों पर आधारित होता हैं।
2-विदेशी व्यापार की दिशा
आजादी के पूर्व भारत के विदेशी व्यापार की दिशा तुलनात्मक लागत लाभ स्थितियों के द्वारा निर्धारित न होकर ब्रिटेन और भारत के बीच औपनिवेशिक संबंधों द्वारा निर्धारित थी। दूसरे शब्दों में, भारत किन देशों से आयात करेगा और कहां पर अपना माल बेचेगा, यह ब्रिटिश शासक अपने देश के हित में तय करते थे।
यही कारण है कि स्वतंत्रता से पूर्व भारत का अधिकांश व्यापार ब्रिटेन, उसके उपनिवेशों और मित्र राष्ट्रों के साथ था। यही प्रवृत्ति आजादी के बाद कुछ वर्षों में भी देखने को मिलती है क्योंकि तब तक भारत की अन्य देशों के साथ व्यापार संबंध स्थापित करने में कोई विशेष सफलता नहीं मिल पाई थी।
उदाहरणार्थ, 1950-51 में भारत की निर्यात आय में इंग्लैंड और अमेरिका का हिस्सा 42 प्रतिशत था। उसी वर्ष भारत के आयात व्यय में उनका हिस्सा 39.1 प्रतिशत था।
अन्य पूंजीवादी देशों जैसे फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, जापान इत्यादि और समाजवादी देशों जैसे सोवियत संघ, रोमानिया, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया इत्यादि के साथ बेहद थोड़ा व्यापार था।
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत विदेशी व्यापार का महत्व जीडीपी के संदर्भ में विश्व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह अपने भौगोलिक आकार के संदर्भ में विश्व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों के बावजूद विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्त करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी ।
विदेशी बाजार में विनिमय बिल का महत्व - Importance of Bills of Exchange in Foreign Trade in Hindi
विदेशी बाजार में विनिमय बिल के माध्यम से भुगतान करना एक लोकप्रिय विधि है। इस विधि का महत्व निम्नलिखित है :
1. बैंक के लिए महत्व - बैंक विदेशी व्यापार में न केवल एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करते है बल्कि वित्त प्रदान करने वाले स्त्रोत का कार्य भी करते है। उन्हें बिलों के प्रस्तुतिकरण, स्वीकृति तथा कटौती के लिए ग्राहकों से लाभ के रूप में कमीशन प्राप्त होता है। इसके साथ ही बैंकों को एक लाभ यह भी मिलता है कि अगर उन्हें नकद राशि की आवश्यकता हो तो वे इन्हें दोबारा कटौती पर भुना सकते है। इससे इनके कोषों की तरलता बनी रहती है।
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विदेशी बाजार में विनिमय बिल का महत्व |
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