ऑनलाइन शिशु मुद्रा ऋण
हमारे बैंक ने बैंक द्वारा कारोबार करने के तरीके को डिजिटाइज़ करने के उद्देश्य से “प्रोजेक्ट वेव” शुरू किया है। डिजिटल पहल क्या भारत में मुद्राओं का व्यापार अवैध है के एक हिस्से के रूप में हमारे बैंक ने “ऑनलाइन शिशु मुद्रा ऋण” लॉन्च किया है जो मौजूदा पूर्व-चयनित ग्राहकों को डिजिटल प्रोसेसिंग के माध्यम से तत्काल एमएसएमई ऋण प्रदान करता है। विभिन्न मानदंडों जैसे आयु, क्रेडिट स्कोर और खाते में लेनदेन के विवरण आदि के आधार पर ग्राहक का पूर्व-चयन किया जाता है।
ग्राहक ऋण के लिए आवेदन कर सकते हैं और संपूर्ण प्रसंस्करण, मूल्यांकन, दस्तावेजीकरण, मंजूरी और संवितरण डिजिटल प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा। ग्राहक निम्नलिखित में से किसी भी चैनल के माध्यम से इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं:
- अप्लाई लोन टैब के तहत इंटरनेट बैंकिंग
- अप्लाई लोन टैब के तहत मोबाइल बैंकिंग
- इंडियन बैंक वेबसाईट
ऑनलाइन शिशु मुद्रा ऋण के विशेष लाभ:
- ग्राहक को शाखा में जाने की कोई आवश्यकता नहीं
- भौतिक आवेदन की आवश्यकता नहीं
- केवाईसी सत्यापन की आवश्यकता नहीं क्योंकि केवल केवाईसी अनुपालन करने वाले ग्राहकों का ही चयन किया जाता है
- शाखा द्वारा कोई मैनुअल मूल्यांकन और मंजूरी की आवश्यकता नहीं
- किसी मैनुअल दस्तावेजीकरण की आवश्यकता नहीं – ई-स्टैम्पिंग और ई-हस्ताक्षर के माध्यम से डिजिटल दस्तावेज़ निष्पादन
- मैन्युअल खाता खोलने और संवितरण की आवश्यकता नहीं
- शाखा के हस्तक्षेप के बिना तत्काल स्वीकृति और संवितरण
पूर्व-आवश्यक / दस्तावेज़ :
ऑनलाइन शिशु मुद्रा ऋण के लिए आवेदन करने से पहले आवेदक के पास निम्नलिखित विवरण होना चाहिए:
- पैन कार्ड
- आधार कार्ड
- उद्यम पंजीकरण प्रमाणपत्र (लिंक किया गया मोबाइल नंबर सीबीएस और प्रमाणपत्र में एक समान होना चाहिए)
- वैध ई-मेल आईडी
- सक्रिय मोबाइल नंबर जो बचत खाते / चालू खाते, आधार कार्ड और उद्यम पंजीकरण प्रमाणपत्र (यूआरसी) से जुड़ा हुआ हो। ओटीपी संबंधित साइट के साथ पंजीकृत मोबाइल नंबर पर भेजा जाएगा
योजना के दिशानिर्देश – ऑनलाइन शिशु मुद्रा ऋण
- 18 वर्ष से अधिक एवं 60 वर्ष तक की आयु के भारत में निवास करने वाले व्यक्ति / प्रोप्राइटर।
- स्टाफ सदस्य एवं सरकारी वेतनभोगी से इतर व्यक्ति
- प्रोप्राइटरशिप फर्म।
- बैंक का मौजूदा ग्राहक जिसका खाता कम से कम 12 महीने से हमारे बैंक में है।
- बचत खाते या चालू खाते के रूप में व्यावसायिक खाता परिचालन अवस्था में हो एवं एकल आवेदक द्वारा परिचालित होन चाहिए।
- ग्राहक का खाता पहले से सी-केवाईसी / ई-केवाईसी अनुपालित होना चाहिए।
- खाता वर्तमान में और विगत 2 वर्षों के दौरान कभी एनपीए नहीं हुआ हो।
- आवेदन की तिथि को आवेदक के सीआईएफ़ पर हमारे बैंक में अन्य कोई व्यावसायिक ऋण नहीं लिया गया हो।
उधारकर्ता को बैंक के मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार सिबिल प्रभार का भुगतान करना होगा।
विकासशील देशों में डिजिटल मुद्रा – cryptocurrency पर रोक लगाने की पुकार
संयुक्त राष्ट्र के व्यापर और विकास संगठन – UNCTAD ने बुधवार को प्रकाशित तीन नीति पत्रों में, विकासशील देशों में डिजिटल मुद्रा – क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) पर रोक लगाने के लिये कार्रवाई किये जाने की पुकार लगाई है.
यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि अलबत्ता व्यक्तिगत डिजिटल मुद्राओं ने कुछ व्यक्तियों और संस्थानों को लाभान्वित किया है, मगर वो एक ऐसी अस्थिर वित्तीय सम्पदा हैं जो सामाजिक जोखिम और लागतें उत्पन्न कर सकती हैं.
अंकटाड ने कहा है कि कुछ लोगों या संस्थानों को डिजिटल मुद्रा के लाभ, वित्तीय स्थिरता, घरेलू संसाधन सक्रियता, और मुद्रा प्रणालियों की सुरक्षा के लिये उत्पन्न उनके जोखिमों के साए में दब जाते हैं.
क्रिप्टो मुद्रा में उछाल
क्रिप्टो करेंसी भुगतान का एक वैकल्पिक रूप हैं. इनके मामलों में वित्तीय भुगतान गुप्त व सुरक्षित टैक्नॉलॉजी के ज़रिये डिजिटल माध्यमों से किया जाता है जिन्हें ब्लॉकचेन कहा जाता है.
क्रिप्टो करेंसी कोविड-19 महामारी के दौरान, दुनिया भर में बहुत तेज़ी से बढ़ी, जिससे पहले से ही मौजूद चलन और भी ज़्यादा मज़बूत हो गया. इस समय दुनिया भर में लगभग 19 हज़ार क्रिप्टो करेंसी मौजूद हैं.
वर्ष 2021 में क्रिप्टो करेंसी रखने वाली आबादी के मामले में, शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं वाले 20 देशों में से, 15 देश विकासशील देश थे.
इस क्या भारत में मुद्राओं का व्यापार अवैध है सूची में 12.7 प्रतिशत के साथ यूक्रेन सबसे ऊपर था, उसके बाद रूस 11.9 प्रतिशत और वेनेज़ुएला 10.3 प्रतिशत के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर थे.
उतना स्वर्णिम नहीं
अंकटाड का कहना है कि बाज़ार में हाल के समय में डिजिटल मुद्रा को लगे झटकों से झलकता है कि क्रिप्टो करेंसी रखने के निजी जोखिम तो हैं ही, मगर केन्द्रीय बैंक, वित्तीय स्थिरता की हिफ़ाज़त करने के लिये हस्तक्षेप करते हैं तो ये समस्या सार्वजनिक बन जाती है.
उससे भी ज़्यादा, अगर क्रिप्टो करेंसी भुगतान के एक माध्यम के रूप में विकसित होना जारी रखती है, और यहाँ तक कि अनौपचारिक रूप में घरेलू मुद्राओं की जगह भी ले लेती है, तो भी देशों की वित्तीय सम्प्रभुता ख़तरे में पड़ सकती है.
कर चोरी का भय
अंकटाड के एक नीति पत्र में बताया गया है कि क्रिप्टो करेंसी विकासशील देशों में किस तरह से घरेलू संसाधन सक्रियता को कमज़ोर करने का एक नया चैनल बन गई है, और साथ ही इस बारे में, बहुत कम कार्रवाई और उसमें भी देरी करने के जोखिमों के बारे में भी आगाह किया गया है.
अंकटाड ने आगाह किया है कि क्रिप्टो करेंसी से वैसे तो विदेशों से अपने मूल स्थानों को रक़म भेजना आसान होता है, मगर उनसे कर चोरी व अवैध वित्तीय लेनदेन के ज़रिये टैक्स से बचाना भी शामिल हो सकता है. बिल्कुल टैक्स स्वर्ग कहे जाने वाले स्थानों की तरह, जहाँ धन का स्वामित्व स्पष्ट नहीं होता है.
एजेंसी ने कहा है कि इस तरह से, क्रिप्टो करेंसी मुद्रा नियंत्रणों की प्रभावशीलता को भी कमज़ोर कर सकती है, जोकि विकासशील देशों को उनके नीतिगत स्थान और छोटे पैमाने पर आर्थिक स्थिरता के लिये एक अहम उपकरण है.
प्राचीन भारतीय मुद्राओं का क्या इतिहास है और इनकी वैल्यू कितनी होती थी?
फूटी कौड़ी (Footie Cowrie), धेला (Dhela), दमड़ी (Damri), पाई और पैसा ये भारतीय सिक्कों की ऐसी इकाइयाँ हैं जो कि बहुत पहले ही चलन से बाहर हो गयी हैं. वर्तमान पीढ़ी के बच्चों ने इन सिक्कों को शायद कभी नही देखा होगा. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने यह लेख प्रकशित किया है, जिसमें यह बताया गया है कि किस सिक्के की वैल्यू कितनी होती थी?
मनुष्य क्या भारत में मुद्राओं का व्यापार अवैध है के बहुत से अविष्कारों में से एक है, रुपये या मुद्रा का अविष्कार. इस अकेले अविष्कार ने पूरी दुनिया का नक्सा ही बदल दिया है. रुपये के विकास ने ना केवल पूरी दुनिया में आर्थिक और सामाजिक तत्रों का विकास किया है बल्कि लोगों के जीने के तरीकों को ही बदल दिया है.
इसी मुद्रा को लेकर समाज में कई तरह की कहावतें भी प्रचलित हुईं हैं जैसे, सोलह आने सच, मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है, मेरा नौकर एक धेले का भी काम नहीं करता है और चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाये.
लेकिन क्या आजकल की पीढ़ी यह जानती है कि कौड़ी, दमड़ी, धेला, पाई और सोलह आने की वैल्यू कितनी होती थी? यदि नहीं तो आइये इस लेख में इसके बारे में पूरी जानकारी लेते हैं.
आइये जानते हैं कि रुपये का अविष्कार कैसे हुआ? (History of Indian Currency)
मानव सभ्यता के विकास के प्रारंभिक चरण में वस्तु विनिमय चलता था लेकिन बाद में लोगों की जरूरतें बढ़ी और वस्तु विनिमय से कठिनाइयाँ पैदा होने लगीं जिसके कारण कौड़ियों से व्यापार आरम्भ हुआ जो कि बाद में सिक्कों में बदल गया.
वर्तमान में जो रुपया चलता है दरअसल यह कई सालों के बाद रुपया बना है. सबसे पहले चलन में फूटी कौड़ी थी जो बाद में कौड़ी बनी. इसके बाद;
A. कौड़ी से दमड़ी बनी
B. दमड़ी से धेला बना
C. धेला से पाई बनी
D. पाई से पैसा बना
E. पैसे से आना बना
F. आना से रुपया बना और अब क्रेडिट कार्ड और बिटकॉइन का जमाना आ गया है.
प्राचीन मुद्रा की एक्सचेंज वैल्यू इस प्रकार थी;
256 दमड़ी =192 पाई=128 धेला =64 पैसा =16 आना =1 रुपया
अर्थात 256 दमड़ी की वैल्यू आज के एक रुपये के बराबर थी.
अन्य मुद्राओं की वैल्यू इस प्रकार है; (Exchange Value of Old Indian Currency)
I. 3 फूटी कौड़ी (Footie Cowrie) =1 कौड़ी
II.10 कौड़ी (Cowrie) =1 दमड़ी
III. 2 दमड़ी (Damri) =1 धेला
IV. 1.5 पाई (Pai) =1 धेला
V. क्या भारत में मुद्राओं का व्यापार अवैध है 3 पाई =1 पैसा (पुराना)
VI. 4 पैसा =1 आना
VII.16 आना (Anna)=1 रुपया
VIII.1 रुपया =100 पैसा
इस प्रकार ऊपर दिए गये पुराने समय की मुद्राओं की वैल्यू से स्पष्ट है कि प्राचीन समय में मुद्रा की सबसे छोटी इकाई फूटी कौड़ी थी जबकि आज के समय में यह इकाई पैसा है.
भारत में कौन से सिक्के चलन से बाहर हो गये हैं?
भारतीय वित्त मंत्रालय ने 30 जून 2011 से बहुत ही कम वैल्यू के सिक्के जैसे 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के संचलन से वापस लिए गए हैं अर्थात अब ये सिक्के भारत में वैध मुद्रा नहीं हैं. इसलिए कोई भी दुकानदार और बैंक वाला इन्हें लेने से मना कर सकता है और उसको सजा भी नहीं होगी.
नोट: ध्यान रहे कि भारत में 50 पैसे का सिक्का अभी वैध सिक्का है इस कारण बैंक, दुकानदार और पब्लिक उसको लेने से मना नहीं कर सकते हैं. यदि कोई 50 पैसे का सिक्का लेने से मना करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
उम्मीद है कि इस लेख में पढ़ने के बाद वर्तमान पीढ़ी के बहुत से बच्चे अब प्राचीन मुद्राओं को मुहावरों से हटकर भी पहचान सकेंगे.
अमेरिका की मुद्रा व्यवहार निगरानी सूची: भारत का नहीं, घाटा अमेरिका का ही
अमेरिका ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत को तगड़ा झटका दिया है। उसने भारत को ‘करंसी मैनिपुलेटर्स’ (मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करने वाले देश) की निगरानी सूची या ‘मुद्रा व्यवहार निगरानी सूची’ में डाल दिया है।
(बाएं) प्रोफेसर पार्थ राय, आइआइएम-कोलकाता, अनूप वधावन, वाणिज्य सचिव। फाइल फोटो।
अमेरिका ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत को तगड़ा झटका दिया है। उसने भारत को ‘करंसी मैनिपुलेटर्स’ (मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करने वाले देश) की निगरानी सूची या ‘मुद्रा व्यवहार निगरानी सूची’ में डाल दिया है। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब अमेरिका ने भारत को लेकर ये कदम उठाया है।
इससे पहले 2018 में भी भारत को सूची में डाला गया था, लेकिन फिर 2019 में हटा दिया था। इस बार अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने भारत सहित कुल 11 देशों को ताजा सूची में शामिल किया है। इनमें सिंगापुर, चीन, थाईलैंड, मैक्सिको, जापान, कोरिया, जर्मनी, इटली और मलेशिया तक शामिल हैं। मंत्रालय ने कहा है कि इन देशों में मुद्रा संग्रहण और इससे जुड़े अन्य तरीकों पर करीबी नजर रखी जाएगी। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, भारत का अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस साल 2020-21 में करीब पांच अरब डॉलर तक बढ़ गया है। यहां ट्रेड सरप्लस का मतलब है, किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक हो जाना।
असर कितना खराब
इस सूची में शामिल होना भारत के लिए अच्छी खबर कतई नहीं है। अमेरिका के इस कदम से भारत को विदेशी मुद्रा बाजार में आक्रामक हस्तक्षेप करने में परेशानी आएगी। हालांकि अमेरिका के लिए ऐसा करना कोई नई बात नहीं है। वह समय-समय पर अलग-अलग देशों को सूची में डालता है। भारत के अलावा चीन को भी कई बार सूची में शामिल किया गया है। अमेरिका का ऐसा मानना है कि वह सूची में उन देशों को ही डालता है, जो मुद्रा के अनुचित व्यवहार को अपनाते हैं, ताकि डॉलर के मुकाबले उनकी खुद की मुद्रा का अवमूल्यन हो सके।
Himachal Pradesh में कांग्रेस के लोगों ने की पाला बदलने की पेशकश, लेकिन पीछे हटी बीजेपी, किन वजहों से पीएम मोदी ने नहीं दिखाई दिलचस्पी
Gadkari At Chinese Restaurant: चाइनीज रेस्टोरेंट में खाने गए थे नितिन गडकरी, शेफ की सैलरी सुन रह गए थे दंग
असल में यदि कोई देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर दे तो उसके देश के निर्यात की लागत कम हो जाती है, सस्ता होने से निर्यात की मात्रा बढ़ जाती है और किसी देश के साथ उसके व्यापारिक संतुलन में बदलाव आ जाता है। अमेरिका किसी देश को इस सूची में डालता है तो उस पर तुरंत तो कोई जुर्माना नहीं लगाया जाता, लेकिन इस सूची में शामिल होने के बाद उस देश की वैश्विक वित्त बाजार में साख जरूर कम हो जाती है।
अमेरिकी पैमाना और भारत
अमेरिका ने इसके लिए तीन तरह के पैमाने तय किए हैं। 1. किसी देश का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार में एक साल के दौरान कम से कम 20 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) हो जाए यानी अमेरिका में उस देश का निर्यात उसके अमेरिका से आयात के मुकाबले ज्यादा हो। 2. एक साल के दौरान किसी देश का करंट अकाउंट सरप्लस उसके सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम दो फीसद तक हो जाए। 3. किसी देश के द्वारा एक साल के भीतर विदेशी मुद्रा की खरीद उसके जीडीपी का कम से कम दो फीसद हो जाए।
हाल ही में खबर आई थी कि भारत का अमेरिका संग व्यापार अधिशेष 20 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। इसके अलावा केंद्रीय बैंक के आंकड़ों में भी कहा गया था कि भारत ने 2019 के अंत तक विदेशी मुद्रा खरीदने के मामले में तेजी दिखाई थी। आंकड़ों के अनुसार साल 2020 के जून महीने तक भारत ने 64 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की खरीद की थी। यह संख्या जीडीपी का 2.4 फीसद है।
क्या है भारत का तर्क
भारत का तर्क यह है कि दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा जिस तरह से पूंजी का प्रवाह किया जा रहा है उसकी वजह से मुद्रा के प्रबंधन के लिए उसके लिए ऐसा हस्तक्षेप जरूरी था। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले साल कहा था कि अमेरिका को किसी देश को मैनिपुलेटर का तमगा देने की जगह उसके मुद्रा भंडार की जरूरत के बारे में क्या भारत में मुद्राओं का व्यापार अवैध है बेहतर समझ रखनी चाहिए।
उन्होंने तो यहां तक संकेत दे दिया था कि अमेरिका के ऐसे कदमों से भारत रिजर्व करंसी के रूप में डॉलर को अपनाने से दूर हो सकता है। जानकारों का मानना है कि अब रिजर्व बैंक को डॉलर की खरीद से वास्तव में बचना चाहिए क्योंकि 500 अरब डॉलर का मुद्रा भंडार ही हमारी एक साल की आयात जरूरतों के लिए काफी है। देश के केंद्रीय बैंक का पूरी तरह वैध परिचालन है। केंद्रीय बैंक का मुख्य काम ही मुद्रा को स्थिरता प्रदान करना है। इसी वजह से केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा खरीदता और बेचता है।
क्या कहते
हैं जानकार
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में केंद्रीय बैंक की गतिविधियां संतुलित हैं और भारत विदेशी मुद्रा भंडार का संग्रह नहीं कर रहा है। व्यक्तिगत रूप से मुझे इसके पीछे का आर्थिक तर्क समझ नहीं आता है। भारत भारत चीन की तरह विदेशी मुद्रा का संग्रह नहीं कर रहा है।
– अनूप वधावन,
वाणिज्य सचिव
देश के केंद्रीय बैंक का पूरी तरह वैध परिचालन है। केंद्रीय बैंक का मुख्य काम ही मुद्रा को स्थिरता प्रदान करना है। इसी वजह से केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा खरीदता और बेचता है। हमारा कुल विदेशी मुद्रा भंडार काफी स्थिर है।
– प्रोफेसर पार्थ राय,
आइआइएम-कोलकाता
कुछ तथ्य
अमेरिका की कांग्रेस के निर्देश पर वहां की ट्रेजरी प्रमुख व्यापारिक भागीदार देशों की एक सूची बनाती क्या भारत में मुद्राओं का व्यापार अवैध है है जिसमें ऐसे भागीदार देशों की मुद्रा के व्यवहार और उनकी वृहदआर्थिक नीतियों पर नजदीकी से नजर रखी जाती है। अमेरिका के 2015 के कानून के मुताबिक कोई भी अर्थव्यवस्था जो कि तीन में से दो मानदंडों को पूरा करती है, उसे निगरानी सूची में रख दिया जाता है।
सूची में देश : भारत के साथ सूची में अन्य 10 देश- चीन, जापान, कोरिया, जमर्नी, आयरलैंड, इटली, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और मैक्सिको को भी रखा गया है। भारत को तीन में से दो मानदंडों के आधार पर इस सूची में डाला गया जो व्यापार अधिशेष और निरंतर, एकतरफा हस्तक्षेप हैं। भारत ने अमेरिका के वित्त विभाग द्वारा मुद्रा व्यवहार में छेड़छाड़ करने वालों की निगरानी सूची में डालने के आधार को खारिज कर दिया।
अमेरिका की मुद्रा व्यवहार निगरानी सूची: भारत का नहीं, घाटा अमेरिका का ही
अमेरिका ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत को तगड़ा झटका दिया है। उसने भारत को ‘करंसी मैनिपुलेटर्स’ (मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करने वाले देश) की निगरानी सूची या ‘मुद्रा व्यवहार निगरानी सूची’ में डाल दिया है।
(बाएं) प्रोफेसर पार्थ राय, आइआइएम-कोलकाता, अनूप वधावन, वाणिज्य सचिव। फाइल फोटो।
अमेरिका ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भारत को तगड़ा झटका दिया है। उसने भारत को ‘करंसी मैनिपुलेटर्स’ (मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करने वाले देश) की निगरानी सूची या ‘मुद्रा व्यवहार निगरानी सूची’ में डाल दिया है। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब अमेरिका ने भारत को लेकर ये कदम उठाया है।
इससे पहले 2018 में भी भारत को सूची में डाला गया था, लेकिन फिर 2019 में हटा दिया था। इस बार अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने भारत सहित कुल 11 देशों को ताजा सूची में शामिल किया है। इनमें सिंगापुर, चीन, थाईलैंड, मैक्सिको, जापान, कोरिया, जर्मनी, इटली और मलेशिया तक शामिल हैं। मंत्रालय ने कहा है कि इन देशों में मुद्रा संग्रहण और इससे जुड़े अन्य तरीकों पर करीबी नजर रखी जाएगी। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, भारत का अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस साल 2020-21 में करीब पांच अरब डॉलर तक बढ़ गया है। यहां ट्रेड सरप्लस का मतलब है, किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक हो जाना।
असर कितना खराब
इस सूची में शामिल होना भारत के लिए अच्छी खबर कतई नहीं है। अमेरिका के इस कदम से भारत को विदेशी मुद्रा बाजार में आक्रामक हस्तक्षेप करने में परेशानी आएगी। हालांकि अमेरिका के लिए ऐसा करना कोई नई बात नहीं है। वह समय-समय पर अलग-अलग देशों को सूची में डालता है। भारत के अलावा चीन को भी कई बार सूची में शामिल किया गया है। अमेरिका का ऐसा मानना है कि वह सूची में उन देशों को ही डालता है, जो मुद्रा के अनुचित व्यवहार को अपनाते हैं, ताकि डॉलर के मुकाबले उनकी खुद की मुद्रा का अवमूल्यन हो सके।
Himachal Pradesh में कांग्रेस के लोगों ने की पाला बदलने की पेशकश, लेकिन पीछे हटी बीजेपी, किन वजहों से पीएम मोदी ने नहीं दिखाई दिलचस्पी
Gadkari At Chinese Restaurant: चाइनीज रेस्टोरेंट में खाने गए थे नितिन गडकरी, शेफ की सैलरी सुन रह गए थे दंग
असल में यदि कोई देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर दे तो उसके देश के निर्यात की लागत कम हो जाती है, सस्ता होने से निर्यात की मात्रा बढ़ जाती है और किसी देश के साथ उसके व्यापारिक संतुलन में बदलाव आ जाता है। अमेरिका किसी देश को इस सूची में डालता है तो उस पर तुरंत तो कोई जुर्माना नहीं लगाया जाता, लेकिन इस सूची में शामिल होने के बाद उस देश की वैश्विक वित्त बाजार में साख जरूर कम हो जाती है।
अमेरिकी पैमाना और भारत
अमेरिका ने इसके लिए तीन तरह के पैमाने तय किए हैं। 1. किसी देश का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार में एक साल के दौरान कम से कम 20 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) हो जाए यानी अमेरिका में उस देश का निर्यात उसके अमेरिका से आयात के मुकाबले ज्यादा हो। 2. एक साल के दौरान किसी देश का करंट अकाउंट सरप्लस उसके सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम दो फीसद तक हो जाए। 3. किसी देश के द्वारा एक साल के भीतर विदेशी मुद्रा की खरीद उसके जीडीपी का कम से कम दो फीसद हो जाए।
हाल ही में खबर आई थी कि भारत का अमेरिका संग व्यापार अधिशेष 20 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। इसके अलावा केंद्रीय बैंक के आंकड़ों में भी कहा गया था कि भारत ने 2019 के अंत तक विदेशी मुद्रा खरीदने के मामले में तेजी दिखाई थी। आंकड़ों के अनुसार साल 2020 के जून महीने तक भारत ने 64 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की खरीद की थी। यह संख्या जीडीपी का 2.4 फीसद है।
क्या है भारत का तर्क
भारत का तर्क यह है कि दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा जिस तरह से पूंजी का प्रवाह किया जा रहा है उसकी वजह से मुद्रा के प्रबंधन के लिए उसके लिए ऐसा हस्तक्षेप जरूरी था। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले साल कहा था कि अमेरिका को किसी देश को मैनिपुलेटर का तमगा देने की जगह उसके मुद्रा भंडार की जरूरत के बारे में बेहतर समझ रखनी चाहिए।
उन्होंने तो यहां तक संकेत दे दिया था कि अमेरिका के ऐसे कदमों से भारत रिजर्व करंसी के रूप में डॉलर को अपनाने से दूर हो सकता है। जानकारों का मानना है कि अब रिजर्व बैंक को डॉलर की खरीद से वास्तव में बचना चाहिए क्योंकि 500 अरब डॉलर का मुद्रा भंडार ही हमारी एक साल की आयात जरूरतों के लिए काफी है। देश के केंद्रीय बैंक का पूरी तरह वैध परिचालन है। केंद्रीय बैंक का मुख्य काम ही मुद्रा को स्थिरता प्रदान करना है। इसी वजह से केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा खरीदता और बेचता है।
क्या कहते
हैं जानकार
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में केंद्रीय बैंक की गतिविधियां संतुलित हैं और भारत विदेशी मुद्रा भंडार का संग्रह नहीं कर रहा है। व्यक्तिगत रूप से मुझे इसके पीछे का आर्थिक तर्क समझ नहीं आता है। भारत भारत चीन की तरह विदेशी मुद्रा का संग्रह नहीं कर रहा है।
– अनूप वधावन,
वाणिज्य सचिव
देश के केंद्रीय बैंक का पूरी तरह वैध परिचालन है। केंद्रीय बैंक का मुख्य काम ही मुद्रा को स्थिरता प्रदान करना है। इसी वजह से केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा खरीदता और बेचता है। हमारा कुल विदेशी मुद्रा भंडार काफी स्थिर है।
– प्रोफेसर पार्थ राय,
आइआइएम-कोलकाता
कुछ तथ्य
अमेरिका की कांग्रेस के निर्देश पर वहां की ट्रेजरी प्रमुख व्यापारिक भागीदार देशों की एक सूची बनाती है जिसमें ऐसे भागीदार देशों की मुद्रा के व्यवहार और उनकी वृहदआर्थिक नीतियों पर नजदीकी से नजर रखी जाती है। अमेरिका के 2015 के कानून के मुताबिक कोई भी अर्थव्यवस्था जो कि तीन में से दो मानदंडों को पूरा करती है, उसे निगरानी सूची में रख दिया जाता है।
सूची क्या भारत में मुद्राओं का व्यापार अवैध है में देश : भारत के साथ सूची में अन्य 10 देश- चीन, जापान, कोरिया, जमर्नी, आयरलैंड, इटली, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और मैक्सिको को भी रखा गया है। भारत को तीन में से दो मानदंडों के आधार पर इस सूची में डाला गया जो व्यापार अधिशेष और निरंतर, एकतरफा हस्तक्षेप हैं। भारत ने अमेरिका के वित्त विभाग द्वारा मुद्रा व्यवहार में छेड़छाड़ करने वालों की निगरानी सूची में डालने के आधार को खारिज कर दिया।
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