आम चुनाव 2024: क्या ओपीएस में कांग्रेस को दिखाई दे रही है अपनी जीत
आम चुनाव 2024 में किसी तरह का बदलाव होगा या मौजूदा सरकार में जनता एक बार और भरोसा करेगी इसके लिए तो इंतजार करना होगा। लेकिन हिमाचल प्रदेश में जीत के बाद कांग्रेस को लगता है कि पुरानी पेंशन स्कीम उनके लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है।
Updated Dec 12, 2022 | 08:28 AM IST
आम चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस की तैयारी
हाल ही में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी और कांग्रेस के लिए बराबरी पर रहे। गुजरात में जहां बीजेपी को प्रचंड जीत हासिल हुए तो हिमाचल ने अपने परंपरा को नहीं तोड़ा और बीजेपी की जगह कांग्रेस के हाथ में सत्ता आ गई। अगर बात कांग्रेस के ट्रंप कार्ड ओपीएस यानी ओल्ड पेंशन स्कीम की करें तो गुजरात के लोगों ने इस पर भरोसा नहीं दिखाया। लेकिन हिमाचल प्रदेश में ओपीएस का कार्ड काम कर गया और कांग्रेस 40 सीट जीतने में कामयाब हो गई। इन सबके बीच जब देश 2024 में आम चुनाव में आने वाली सरकार का फैसला करेगा तो कांग्रेस को लगता है कि ओपीएस का मुद्दा उसके लिए संजीवनी की तरह साबित हो सकता है। लेकिन क्या वास्तव में ओपीएस का मुद्दा आम चुनाव 2024 के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बनेगा। क्या बीजेपी उसकी काट निकाल पाने में कामयाब होगी। इस सवाल का जवाब अगले साल छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश के नतीजों से स्पष्ट होगा। 2023 के अंत में यानी दिसंबर के महीने में इन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होंगे जिन्हें दिल्ली की सत्ता के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जाएगा।
इन राज्यों पर भी नजर
अगर बात इन तीनों राज्यों की करें तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में है और मध्य प्रदेश में बीजेपी सत्ता पर काबिज है। इनमें से दो राज्यों छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम पहले से लागू है और हिमाचल प्रदेश में ओपीएस के दम पर कांग्रेस सत्ता में है। शपथ लेने के बाद हिमाचल के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि ओपीएस उनके लिए लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना सिर्फ चुनावी मुद्दा नहीं है उसे जमीन पर उतारने का दृढ़ इरादा है। अगर हिमाचल की तरह छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ओपीएस के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं तो निश्चित तौर पर पार्टी 2024 के चुनाव के लिए इसे अहम मुद्दा बनाएगी।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि राजनीति में हर दल का लक्ष्य सत्ता लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना हासिल करना होता है। सत्ता प्राप्ति के लिए तरह तरह की रणनीति पर काम किया जाता है। अगर कांग्रेस ने ओपीएस को मुद्दे को जोर शोर से उठाया तो उसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करके दिखाया भी। जब हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तो पार्टी ने कहा कि उसके ओपीएस सिर्फ चुनावी मुद्दा नहीं है बल्कि वो कर्मचारियों के हितों के प्रति सजग भी है। अगर हिमाचल के चुनावी नतीजों को देखें तो एक बात साफ है कि ओपीएस का मुद्दा प्रभावी रहा। ऐसे में निश्चित तौर पर उदाहरण के साथ कांग्रेस जब जनता के बीच यह कहेगी कि हम सिर्फ वादे नहीं करते उसे निभाते भी हैं तो उसका असर निश्चित तौर पर होगा। लेकिन अगर गुजरात के नतीजों की बात करें तो बीजेपी की जीत से साबित होता है कि आम चुनाव में सिर्फ ओपीएस ही एक मुद्दा नहीं हो सकता है। गुजरात और हिमाचल की जमीनी हकीकत में फर्क है। हिमाचल में जहां ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों पर आश्रित हैं उस तरह की तस्वीर गुजरात की नहीं है। लेकिन हिंदी हार्टलैंड के जो प्रदेश लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना हैं जहां औद्योगिकरण उस स्तर का नहीं वहां यह मुद्दा प्रभावी हो सकता है।
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कांग्रेस भी जश्न मनाती, क्यों मातम में रही?
दो दिन में आए तीन नतीजों में देश की जनता ने देश की तीन पार्टियों को जश्न मनाने का मौका दिया था। सात दिसंबर को दिल्ली नगर निगम के चुनाव नतीजे आए थे और 15 साल का भाजपा का कब्जा समाप्त कर आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीता था। इसके अगले दिन गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजे आए। गुजरात में भाजपा ने 27 साल से बना अपना कब्जा बरकरार रखा लेकिन हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने उसको हरा कर सत्ता छीन ली। इसके साथ ही आठ दिसंबर को पांच राज्यों की छह विधानसभा और एक लोकसभा सीट के उपचुनाव का नतीजा आया था, जिसमें कांग्रेस के लिए अच्छी बात यह थी कि जिन दो राज्यों- राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उन दोनों राज्यों की सीटें कांग्रेस ने बड़े अंतर से जीत ली थी।
हैरानी की बात यह है कि दो दिन में आए इन तीन नतीजों का जश्न सिर्फ भाजपा और आम आदमी पार्टी ने मनाया। कांग्रेस ने जीत का जश्न नहीं मनाया। उलटा उसके यहां इस बात का मातम मनाया गया कि गुजरात में पार्टी आधार खत्म हो गया, वह 42 फीसदी वोट से घट कर 27 फीसदी पर आ गई और उसकी सीटें 77 से कम कर 17 रह गईं, जिससे उसको मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी नहीं मिलेगा। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि कांग्रेस पांच सीट नहीं जीत पाएगी और लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना उनकी पार्टी 92 सीट जीत कर सरकार बनाएगी। कांग्रेस तो नहीं लेकिन उनकी पार्टी पांच सीट पर सिमट गई। इसके बावजूद उन्होंने दिल्ली में इस बात का जश्न मनाया कि उनकी पार्टी अब राष्ट्रीय पार्टी बन जाएगी।
सोचें, केजरीवाल की इस रणनीति पर! उन्होंने गुजरात में पार्टी और सभी बड़े नेताओं की हार को इस सकारात्मक विचार में ढाल दिया कि पार्टी लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना राष्ट्रीय हो रही है। अपनी पार्टी के तमाम बड़े नेताओं के साथ वे पार्टी कार्यालय में पहुंचे, हजारों की संख्या में समर्थक जुटाए गए, ढोल-नगाड़े बजाए गए और उन्होंने भाषण भी दिया। इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गाजे-बाजे के साथ पार्टी मुख्यालय पहुंचे और हजारों कार्यकर्ताओं के साथ जीत का जश्न मनाया। हिमाचल की हार को भी उन्होंने वोट प्रतिशत के दम पर अपनी जीत बताया।
इसके उलट कांग्रेस ने क्या किया? कांग्रेस ने कुछ नहीं किया। आठ दिसंबर को लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना भी रूटीन से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा चलती रही, सोनिया गांधी रणथंभौर पहुंचीं, प्रियंका भी पहुंचीं और अगले दिन यानी नौ दिसंबर को राहुल भी सुबह की यात्रा करके हेलीकॉप्टर से रणथंभौर चले गए, जहां सोनिया गांधी का जन्मदिन मनाया गया। क्या कायदे से कांग्रेस को भी जश्न नहीं मनाना चाहिए था? पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बड़ी माला पहना कर स्वागत नहीं करना चाहिए था? उस माला में अगर प्रियंका गांधी वाड्रा भी होतीं और बाहर समर्थक नारेबाजी करते तो क्या मीडिया और सोशल मीडिया में इस इवेंट की कवरेज नहीं होती? लेकिन कांग्रेस ने ऐसा कुछ नहीं किया। सिर्फ एक बयान जारी करके हिमाचल की जीत का श्रेय प्रियंका को दे दिया गया। प्रियंका कहीं दिखी भी नहीं!
लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना
Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना ने 156 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, कांग्रेस ने…
हिमाचल की आर्थिक हालत पहले से खराब, फिर वादे पूरे करने के लिए हजारों करोड़ कहां से लाएंगे सुक्खू
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने भले ही सुक्खू को सीएम पद की कमान सौंप दी है लेकिन उनकी राह में कई चुनौतियां है। सबसे बड़ी चुनौती पहले से आर्थिक बदहाली के शिकार हिमाचल में रकम का जुगाड़ करने की है।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ है। हिमाचल प्रदेश में नए नेतृत्व को लेकर निर्णायक कदम उठाने के बावजूद राज्य में कांग्रेस पार्टी के लिए अभी काम खत्म नहीं हुआ है क्योंकि उसके सामने गुटबाजी को दूर रखने और महत्वाकांक्षी चुनावी वादों को पूरा करने की दोहरी चुनौती है। राज्य की वित्तीय स्थिति पहले से ही मुश्किल में है। हिमाचल पर 31 मार्च, 2002 तक लगभग 65,000 करोड़ रुपये के कर्ज था। ऐसे में जनता से किए वादों को पूरा करने के लिए सुक्खू और उनकी टीम रकम कैसे जुटाती है, इस पर नजरें होंगी। कैग का कहना है कि राज्य सरकार ने कर्ज ली गई रकम का 74.11 प्रतिशत हिस्सा तो पिछले कर्ज के पुनर्भुगतान में किया जबकि 25.89 प्रतिशत रकम पूंजीगत व्यय में किया है।
वादे पूरे करने में दस हजार करोड़ सालाना होंगे खर्च
चुनावी वादों को पूरा करने के लिए सबसे कठिन कार्य राज्य सरकार के लिए वित्त जुटाना होगा। इन वादों को पूरा करने के लिए राज्य सरकार की ओर से लगभग दस हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च होंगे।
25,000 करोड़ रुपये कर्ज भी भरना जरूरी
राज्य विधानसभा में 2020-21 के लिए पेश की गई कैग की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 39 प्रतिशत कर्ज (लगभग 25,000 करोड़ रुपये) अगले दो से पांच वर्षों में देय है।
पांच लाख नौकरियां देने में भी हजारों करोड़ होंगे खर्च
कांग्रेस द्वारा किए गए चुनावी वादों को लागू करना एक चुनौतीपूर्ण काम होने जा रहा है, जिसमें पहले साल में एक लाख नौकरियां और पांच साल की अवधि में कुल पांच लाख नौकरियां देना शामिल है।
हर महिला को 1500 रुपये देने पर सालाना 5,000 करोड़ रुपये खर्च
तत्काल कार्य विभिन्न सरकारी विभागों में राज्य की 62,000 रिक्तियों को भरना होगा, जिससे कर्मचारी लागत भी बढ़ेगी। राज्य की हर वयस्क महिला को 1500 रुपये देने के वादे पर सालाना 5,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने में सालाना 2,500 करोड़ होंगे खर्च
सूत्रों ने कहा कि इसके साथ ही हर घर को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने के वादे पर सालाना 2,500 करोड़ रुपये का और खर्च आएगा। वर्ष 2022-23 के बजट अनुमानों के अनुसार, कुल प्राप्तियां और नकद व्यय क्रमशः 50,300.41 करोड़ रुपये और 51,364.76 करोड़ रुपये अनुमानित हैं।
राजकोषीय घाटा 9,602.36 करोड़ रुपये
हिमाचल के लिए 2022-23 में राजस्व घाटा 3,903.49 करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा 9,602.36 करोड़ रुपये रहने की संभावना है। पार्टी को राज्य की सत्ता में लाने में मदद करने वाला सबसे बड़े वादे पुरानी पेंशन योजना की बहाली भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
रोजगार देना भी बड़ी चुनौती
कांग्रेस ने सूबे में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विधायकों को विशेष बजट देने, बिजली परियोजनाओं से प्रभावित लोगों को प्रति परिवार एक नौकरी और बेरोजगारों को शहरी मनरेगा के तहत रोजगार देने का भी वादा किया गया है।
मंत्रिमंडल में सब चाहेंगे जगह
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और उपमुख्यमंत्री का रास्ता अभी कठिन है जिसमें पहली बाधा मंत्रिमंडल का गठन होगी। मंत्रिमंडल गठन के मामले में उन्हें पार्टी में प्रतिस्पर्धी समूहों के दबाव से निपटना होगा।
क्या सक्रिय होगा वीरभद्र खेमा
पार्टी के लिए सबसे पहली मुश्किल विभागों का आवंटन होगा क्योंकि दिवंगत मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के समर्थक उनके कथित प्रतिद्वंद्वी सुक्खू को शीर्ष पद पर काबिज किये जाने के बाद पहले से ही खुद को दरकिनार महसूस लघु अवधि के रुझान के लिए रणनीति जीतना कर रहे हैं।
प्रतिभा सिंह को लेकर चलना होगा साथ
यह भी देखना होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह अपने खेमे को संतुष्ट करने के लिए वह क्या मोलभाव करती हैं। इस तरह की चर्चा है कि उन्होंने अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए एक महत्वपूर्ण विभाग मांगा है। विक्रमादित्य सिंह ने शिमला ग्रामीण से जीत दर्ज की है।
पार्टी को साथ लेकर चलना होगा
पार्टी के सूत्रों ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व विक्रमादित्य सिंह को राज्य मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री बनाने पर सहमत हो गया है। संगठनात्मक एकता की चुनौती के अलावा, राज्य में कांग्रेस सरकार को जमीनी स्तर पर काम करने और घोषणापत्र के वादों को पूरा करने की आवश्यकता होगी।
सुक्खू लाएंगे नया सिस्टम
हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भरोसा दिया है कि भले ही भाजपा ने सूबे में सत्ता गंवा दी हो लेकिन हिमाचल प्रदेश के विकास में कोई बाधा नहीं आएगी। वहीं सुक्खू ने शनिवार को कहा था कि महत्वपूर्ण फैसले लेते समय सभी हितधारकों को साथ लिया जाएगा। हम व्यवस्था को बदलना चाहते हैं। मुझे कुछ समय दें। हमें एक नई प्रणाली लाने के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। कांग्रेस ने सभी बुजुर्गों के लिए चार साल में एक बार मुफ्त तीर्थ यात्रा से लेकर हर विधानसभा क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए समर्पित बजट तक कई महत्वाकांक्षी वादे किए थे।
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