रियल एस्टेट, घर से संबंधित उत्पादों और एफएमसीजी पर्सनल केयर स्पेस की कंपनियों को भी काफी फायदा होगा।
डॉलर-रुपये की चाल से कैसे कमाई कर सकते हैं आप?
क्या शेयर खरीदने के लिए खोले गए खाते से फ्यूचर में ट्रेडिंग की जा सकती है?
जी, यह मुमकिन है. शर्त यह है कि ब्रोकर इक्विटी, कमोडिटी और इंटरेस्ट डेरिवेटिव के साथ इस सेगमेंट की पेशकश कर रहा हो.
कॉन्ट्रैक्ट साइज क्या है और कितना निवेश कर सकते हैं?
कॉन्ट्रैक्ट रुपये में होता है. इसका निपटान भी RBI के रेफरेंस रेट के आधार पर रुपये में ही होता है. कॉन्ट्रैक्ट साइज 1,000 डॉलर है. इसमें क्लाइंट अधिकतम एक करोड़ डॉलर या कुल ओपन इंटरेस्ट के 6 फीसदी (जो भी बड़ा हो) तक निवेश कर सकता है.
एक उदाहरण लेते हैं
मान लेते हैं कि डॉलर-रुपी कॉन्ट्रैक्ट 69.55 के स्तर पर ट्रेड कर रहा है. आपको लगता है 29 मई को एक्सपायरी वाले दिन यह मजबूत होकर 70 के स्तर पर पहुंच जाएगा. आप 5 फीसदी मार्जिन या 3,477 रुपये के मार्जिन का भुगतान कर 69.55 के स्तर पर फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीद लेते हैं. अगर डॉलर वाकई में 70 रुपये पहुंचता है तो एक कॉन्ट्रैक्ट पर 450 रुपये (0.45×1000) बना लेंगे. एक करोड़ डॉलर की लिमिट पर आपको 45 लाख रुपये का फायदा होगा.
भारत क्यों है 1 खरब डॉलर का निवेश चुंबक
शेयर बाजार 11 सितंबर 2022 ,16:15
© Reuters. भारत क्यों है 1 खरब डॉलर का निवेश चुंबक
में स्थिति को सफलतापूर्वक जोड़ा गया:
जैसा कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने हाल ही में कहा था, भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बनी हुई है। भारत की विकास दर दुनिया में सबसे तेज है, खुदरा मुद्रास्फीति में नरमी आई है, बफर खाद्य भंडार प्रचुर मात्रा में है, विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है और चालू खाता घाटा स्थायी स्तरों के भीतर अच्छी तरह से रहने की उम्मीद है।घरेलू खपत मजबूत वापसी कर रही है, जो परंपरागत रूप से भारत के आर्थिक विकास के मुख्य चालकों में से एक है। यह सभी आकार के व्यवसायों के लिए अच्छी क्या डॉलर में निवेश करना लाभदायक है? खबर है। सीधे शब्दों में कहें, जब उपभोक्ता अधिक खर्च करते हैं, तो व्यवसायों के पास निवेश करने के लिए अधिक पूंजी होती है, और पूरे सिस्टम में बढ़ी हुई तरलता पूरक क्षेत्रों और उच्च अंत वस्तुओं और सेवाओं को सक्रिय करती है।
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उदाहरण के क्या डॉलर में निवेश करना लाभदायक है? तौर पर नेपाल ने भारत के साथ फिक्सड पेग एक्सचेंज रेट अपनाया है. इसलिए एक भारतीय रुपये की कीमत नेपाल में 1.6 नेपाली रुपये होती है. नेपाल के अलावा मिडिल ईस्ट के कई देशों ने भी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट अपनाया है.
डॉलर दुनिया की सबसे बड़ी करेंसी है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा कारोबार डॉलर में ही होता है. हम जो सामान विदेश से मंगवाते हैं उसके बदले हमें डॉलर देना पड़ता है और जब हम बेचते हैं तो हमें डॉलर मिलता है. अभी जो हालात हैं उसमें हम इम्पोर्ट ज्यादा कर रहे हैं और एक्सपोर्ट कम कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम ज्यादा डॉलर दूसरे देशों को दे रहे हैं और हमें कम डॉलर मिल रहा है. आसान भाषा में कहें तो दुनिया को हम सामान कम बेच रहे हैं और खरीद ज्यादा रहे हैं.
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट क्या होता है?
आसान भाषा में कहें तो फॉरेन एक्सचेंज एक अंतरराष्ट्रीय बाजार है जहां दुनियाभर की मुद्राएं खरीदी और बेची जाती हैं. यह बाजार डिसेंट्रलाइज्ड होता है. यहां एक निश्चित रेट पर एक करेंसी के बदले दूसरी करेंसी खरीदी या बेची जाती है. दोनों करेंसी जिस भाव पर खरीदी-बेची जाती है उसे ही एक्सचेंज क्या डॉलर में निवेश करना लाभदायक है? रेट कहते हैं. यह एक्सचेंज रेट मांग और आपूर्ति के सिंद्धांत के हिसाब से घटता-बढ़ता रहा है.
करेंसी का डिप्रीशीएशन तब होता है जब फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर करेंसी की कीमत घटती है. करेंसी का डिवैल्यूऐशन तब होता है जब कोई देश जान बूझकर अपने देश की करेंसी की कीमत को घटाता है. जिसे मुद्रा का अवमूल्यन भी कहा जाता है. उदाहरण के तौर पर चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया. साल 2015 में People’s Bank of China (PBOC) ने अपनी मुद्रा चीनी युआन रेनमिंबी (CNY) की कीमत घटाई.<
मुद्रा का अवमूल्यन क्यों किया जाता है?
करेंसी की कीमत घटाने से आप विदेश में ज्यादा सामान बेच पाते हैं. यानी आपका एक्सपोर्ट बढ़ता है. जब एक्सपोर्ट क्या डॉलर में निवेश करना लाभदायक है? बढ़ेगा तो विदेशी मुद्रा ज्यादा आएगी. आसान भाषा में समझ सकते हैं कि एक किलो चीनी का दाम अगर 40 रुपये हैं तो पहले एक डॉलर में 75 रुपये थे तो अब 80 रुपये हैं. यानी अब आप एक डॉलर में पूरे दो किलो चीनी खरीद सकते हैं. यानी रुपये की कीमत गिरने से विदेशियों को भारत में बना सामान सस्ता पड़ेगा जिससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा और देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा.
डॉलर की कीमत सिर्फ रुपये के मुकाबले ही नहीं बढ़ रही है. डॉलर की कीमत दुनियाभर की सभी करेंसी के मुकाबले बढ़ी है. अगर आप दुनिया के टॉप अर्थव्यवस्था वाले देशों से तुलना करेंगे तो देखेंगे कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत उतनी नहीं गिरी है जितनी बाकी देशों की गिरी है.
यूरो डॉलर के मुकाबले पिछले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. कुछ दिनों पहले एक यूरो की कीमत लगभग एक डॉलर हो गई थी. जो कि 2009 के आसपास 1.5 डॉलर थी. साल 2022 के पहले 6 महीने में ही यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी, येन की कीमत 19 फीसदी और पाउंड की कीमत 13 फीसदी गिरी है. इसी समय के भारतीय रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है. यानी भारतीय रुपया यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले कम गिरा है.
अमेरिकी फंडों में करें निवेश, उठाएं मजबूत डॉलर का फायदा
उन्होंने कहा कि छोटे निवेशक घरेलू म्यूचुअल फंड कंपनियों के फीडर फंड के जरिए अमेरिकी कंपनियों के शेयरों में निवेश कर सकते हैं. ऐसे फंडों में फ्रैंकिलन इंडिया फीडर फ्रैंकिलन यूएस आपर्च्युनिटीज फंड, डीएसपी यूएस फ्लेक्सिबल इक्विटीज फंड और एडलवाइड ग्रेटर चाइना इक्विटी ऑफशोर फंड शामिल हैं. उन्होंने कहा कि निवेशक फीडर फंडों के जरिए दो बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में निवेश कर सकते हैं. ऐसे फंडों में उन्हें अपने इक्विटी पोर्टफोलियो का 10-15 फीसदी हिस्सा लगाना चाहिए.
ज्यादा अनुभवी निवेशक सीधे विदेश शेयर बाजारों में निवेश कर सकते हैं. वे लिबरलाइज्ड रिमेटेंस स्कीम (एलआरएस)
के जरिए एक वित्त वर्ष में विदेश क्या डॉलर में निवेश करना लाभदायक है? में 2,50,000 डॉलर का निवेश कर सकते हैं. डब्लूजीसी वेल्थ के चीफ इनवेस्टमेंट अफसर राजेश चेरेवू ने कहा कि निवेशकों को अपने कुल एसेट एलोकेशन में इंटरनेशनल एलोकेशन को भी शामिल करना चाहिए.
निवेशक जागरूक हुए हैं और डायवर्सिफिकेशन के लिए विदेशों बाजारों में पैसा लगाना पसंद कर रहे हैं. आरबीआई के आंकड़ों को देख . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : October 24, 2022, 17:30 IST
भारत के लोगों का विदेशी बाजारों में निवेश लगाता बढ़ रहा है.
तकनीक ने ओवरसीज़ निवेश करना काफी आसान बना दिया है.
भारत में कई म्यूचुअल फंड हाउस विदेशी निवेश का विकल्प मुहैया कराते हैं.
नई दिल्ली. निवेशक इन दिनों विदेशी शेयरों में भी निवेश कर रहे हैं. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के आंकड़ों के हिसाब से 2021-22 में भारतीयों ने 19,611 मिलियन डॉलर का निवेश विदेशी बाजारों में किया है. इससे पिछले साल यह महज 12,684 मिलियन डॉलर था.
भारत सरकार की लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत एक भारतीय एक वित्त वर्ष में 2,50,क्या डॉलर में निवेश करना लाभदायक है? 000 (ढाई लाख) डॉलर विदेश भेज सकता है. रिजर्व बैंक ने समय के साथ इस सीमा में बढ़ोतरी की है. साल 2004 में जब यह स्कीम शुरू हुई थी, तब इसकी सीमा महज 25 हजार डॉलर थी. म्यूचुअल फंड क्या डॉलर में निवेश करना लाभदायक है? में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश करना आसान हो गया है. इसका प्रोसेस कुछ यूं है…
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