इसके अलावा, अगर बाजार अच्छा है, और सरकारें घबराती नहीं हैं या जूझने को तैयार रहती हैं ,तो एक ऐसी व्यवस्था कायम होने लगती है जो अपने आप को सुधारती चले. अपनी गलतियों से सीखती रहे. कैसे? ठीक है, मैं समझाता हूं, शुरुआत आपके बाजीगर, यानी गिरते रुपए से.

आखिर कैसे उतरे विशाल विदेशी मुद्रा भंडार का बोझ

ऐसे मुश्किल हालात में भारत के लिए अपने देश के भीतर निवेश करना भी आसान नहीं है। इस विषय पर इससे पहले की गई चर्चाओं से पता चलता है कि विदेशी मुद्रा भंडार के इस्तेमाल के लिए घरेलू परियोजनाओं की शुरूआत करना कितना मुश्किल है।

तुलनात्मक रूप से बेहतर विकास परिदृश्य के आधार पर भारत यह दावा कर सकता है कि विकसित देशों के निवेशक अपने देश आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा में निवेश करने के बजाए जोखिम युक्त उच्च प्रतिफल की आशा से भारत में निवेश को तरजीह देंगे।

यदि यह दावा विश्वसनीय है तो भारत ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को पश्चिम में क्यों निवेश कर रखा है? वजह सीधी सी है। भारत की पहली प्राथमिकता अपने विदेशी मुद्रा भंडार के मूलधन को सुरक्षित रखना है या अधिक से अधिक ब्याज हासिल करना।

यह सोच कर भी संतोष किया जा सकता है कि अगर मूलधन को सुरक्षित रखना है तो हमारे पास निवेश का और कोई वैकल्पिक जरिया नहीं है। कम से कम उस समय तक जबकि भारतीय मुद्रा पूर्ण परिवर्तनीय नहीं बन जाती है।

रुपया लगातार गिर रहा है, लेकिन यह वरदान भी साबित हो सकता है

अगर एक अमेरिकी डॉलर (American dollar) 80 रुपए का हो जाता है तो इतनी हाय तौबा क्यों? अगर मेरी दादी आज जिंदा होतीं तो यह भोला सा सवाल जरूर करतीं. वैसे अर्थव्यवस्था का जो हाल है, उसे देखते हुए चारों तरफ से हाय-तौबा मची है. नेताओं आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा से लेकर शेयर मार्केट के सट्टेबाज, और सोशल मीडिया से लेकर क्रिप्टो करंसी के दीवाने नौजवान- हर तरफ से रुपए में गिरावट पर त्राहिमाम-त्राहिमाम की चीख पुकार सुनाई दे रही है.

'लक्ष्मण रेखा' करोगे पार तो नहीं बचेगी सरकार

वैसे मैं किसी को डराना नहीं चाहता, लेकिन अगर रुपए में गिरावट ही आपके लिए कयामत की दस्तक है तो आपने दूसरे खौफनाक मंजर नहीं देखे. विदेशी निवेशकों ने इस कैलेंडर वर्ष में 30 बिलियन डॉलर वापस खींच लिए हैं. भारत को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 70 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है. हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 50 बिलियन डॉलर गिरकर 600 बिलियन डॉलर हो गया है. करीब 270 बिलियन डॉलर के विदेशी कर्ज का बोझ हमारे कंधों पर है जिसे नौ महीने के भीतर चुकाना है. ऐसे में सोचिए कि डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 80 के इस पार होगी या उस पार?

चीन और जापान ने अपनी करंसी को जानबूझकर कमजोर रखा

लेकिन मुझे यह '80 का फोबिया' बेहद हास्यास्पद लगता है. मैं सोचता हूं कि इस बात को कितने लोग समझते होंगे कि जापान और चीन ने कैसे जानबूझकर अपनी मुद्राओं की कीमत कम रखी- सिर्फ इसलिए ताकि निर्यात बाजार में उनके उत्पाद धूम मचा सकें.

अब यह तो सभी लोग जानते होंगे कि इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने पिछले 50 सालों में चामत्कारिक रूप से आसमान छुआ है. बेशक, उनकी आर्थिक कायापलट की दूसरी वजहें भी हैं लेकिन कृत्रिम तरीके से रॅन्मिन्बी और येन के मूल्यह्रास से भी उन्हें बहुत फायदा हुआ. यह भी सच है कि दोनों देशों को ‘करंसी मैन्यूपुलेटर्स’ कहकर बदनाम किया गया, चूंकि पश्चिमी ब्लॉक चोटिल हुआ और उन्हें इन दोनों देशों की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं से संघर्ष करना पड़ रहा है.

तो, चीन और जापान ने जानबूझकर अपनी करंसियों को कमजोर क्यों किया? क्योंकि शुरुआती दौर में सस्ती करंसी ने उनके अपने टेक, अप्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं की ‘हिफाजत’ की. इस बीच उन्हें अपने औद्योगिक आधार को आधुनिक और उत्पादक बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल गया.

रुपए में गिरावट का नुकसान गिनाइए

क्या कोई मुझे दो, सिर्फ दो वजहें बता सकता है कि रुपए में गिरावट का बुरा नतीजा क्या होगा? मैं देख सकता हूं कि लोगों ने झट से अपने हाथ उठा लिए क्योंकि एक प्रतिकूल प्रभाव तो सार्वभौमिक और निर्विवाद है. रुपये में गिरावट से आयातित वस्तुएं कुछ समय के लिए महंगी हो जाएंगी. तेल की कीमतें, उर्वरक, पूंजीगत वस्तुओं का निवेश सब महंगा हो जाएगा- आयात के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी. तो, कोई शक नहीं कि कमजोर रुपये का एक भयानक नतीजा आयातित मुद्रास्फीति है.

चलिए अब यह बताइए कि दूसरा बुरा नतीजा क्या है? खामोशी. बहुत से लोग चुप हो जाएंगे. दूसरा नतीजा. हम्म मेरे ख्याल से, रुपए में गिरावट देश के स्वाभिमान को मिट्टी में मिला देगा.

अरे छोड़िए भी. यह कोई आर्थिक दलील नहीं, सिर्फ एक मूर्खतापूर्ण, राजनीतिक और भावुक टिप्पणी है. क्योंकि कड़वी सच्चाई यह है कि आयात महंगा होने के अलावा, रुपए में गिरावट का ऐसा कोई- मैं दोहराता हूं- ऐसा कोई बहुत बड़ा नुकसान नहीं होने वाला. हां, इसमें बहुत सी अच्छी बातें छिपी हुई हैं, जैसे उच्च निर्यात आय, एसेट्स की कीमत में सुधार, अधिक घरेलू निवेश वगैरह वगैरह.

रुपया कमजोर नहीं, डॉलर हो रहा है मजबूत : सीतारमण

रुपया कमजोर नहीं, डॉलर हो रहा है मजबूत : सीतारमण

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस वर्ष भारतीय मुद्रा रुपये में आई आठ फीसदी की गिरावट को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि कमजोरी रुपये में नहीं आई बल्कि डॉलर में मजबूती आई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की सालाना बैठकों में शामिल होने के बाद सीतारमण ने संवाददाताओं से बातचीत में भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद को मजबूत बताते हुए कहा आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती के बावजूद भारतीय रुपया में स्थिरता बनी हुई है। सीतारमण ने कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद अच्छी है। मैं बार-बार कह रही हूं कि मुद्रास्फीति भी इस स्तर पर है जहां उससे निपटना संभव है।’

विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार फिर लुढ़का

Kavita Singh Rathore

राज एक्सप्रेस। देश में जितना भी विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार जमा होता है, उसके आंकड़े समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं। इन आंकड़ों में हमेशा ही उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। काफी समय तक विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) में गिरावट के बाद पिछले सप्ताह दर्ज हुई बढ़त के बाद अब एक बार फिर इसमें बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, स्वर्ण भंडार (Gold Reserves) में इस बार बढ़त दर्ज हुई है। इस बात का खुलासा RBI द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों से होता है। बता दें, यदि विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज की जाती है तो, कुल विदेशी विनिमय भंडार में भी बढ़त दर्ज होती है।

डॉलर की कमजोरी से मजबूत हुआ रुपया, 35 आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा पैसे की बढ़त

Indian Rupee

नई दिल्ली। दुनिया की अन्य प्रमुख मुद्राओं के बास्केट में डॉलर के कमजोर पड़ने और घरेलू शेयर बाजार में रही तेजी से समर्थन पाकर अंतरबैंकिंग मुद्रा बाजार में भारतीय मुद्रा मंगलवार को आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा 35 पैसे की तेजी में दो सप्ताह के उच्चतम स्तर 73.48 रुपए प्रति डॉलर पर बंद हुई। भारतीय मुद्रा गत दिवस 26 पैसे की गिरावट में 73.83 रुपए प्रति डॉलर पर रही थी। घरेलू शेयर बाजार में रही तेजी के दम पर रुपया चार पैसे की तेजी के साथ 73.79 रुपए प्रति डॉलर पर खुला।

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